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कन्वर्जेंस एनर्जी सर्विसेज लिमिटेड (CESL) देश में 16 राजमार्गों और एक्सप्रेसवे समेत 10,275 किलोमीटर के क्षेत्र में बिजली चालित वाहनों के लिए 810 चार्जिंग स्टेशन लगाएगी. CESL बिजली मंत्रालय के तहत एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड (EESL) की पूर्ण स्वामित्व वाली अनुषंगी है.
कंपनी ने एक बयान में बताया कि ये चार्जिंग स्टेशन मुंबई-पुणे राजमार्ग, अहमदाबाद-वडोदरा राजमार्ग, दिल्ली-आगरा यमुना एक्सप्रेसवे, ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे, हैदराबाद ओआरआर एक्सप्रेसवे और आगरा-नागपुर राजमार्ग समेत अन्य व्यस्त मार्गों पर बनाए जाएंगे. अगले छह से आठ महीने में ये चार्जिंग स्टेशन बन कर तैयार हो जाएंगे.
आपको बता दें कि हाल ही में परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एक नई घोषणा की थी कि सरकार दिल्ली से मुंबई के बीच एक इलेक्ट्रिक हाइवे (E-Highway) बनाने की योजना पर विचार कर रही है. इसके बाद कई लोगों में इस बात कंफ्यूजन था कि इलेक्ट्रिक हाइवे और इलेक्ट्रिक कॉरिडॉर में अंतर क्या है. तो हम आपको बता देते हैं इनके बीच का अंतर..
जब हाइवे पर लगातार बिजली से कोई भी गाड़ी चलती है तो उसे इलेक्ट्रिक कॉरिडॉर कहते हैं. इसको आप मोटेतौर बिजली से चलने वाली ट्रेन से समझ सकते हैं. हालांकि टेक्नॉलॉजी में थोड़ा अंतर है. ट्रेन जहां ऊपर से बिजली पाती है वहीं हाइवे पर चलने वाली गाड़ियां नीचे से बिछी तारों से बिजली लेंगी. मतलब ये है कि कन्वेक्शन लाइन या फिर ओवरहेड वायर से चार्ज होकर जो गाड़ी हाइवे पर चलती है उसे इलेक्ट्रिक कॉरिडॉर कहते है. कन्वेक्शन लाइन में गाड़ी को बिजली सड़क के नीचे से बिछायी गई तारों से मिलती है, जबकि पैंटोग्राफ वायर सड़क के ऊपर लगे होते हैं, जिससे वाहन की बैटरी चार्ज होती रहती है. इन तारों में लगातार ऊर्जा सप्लाई किया जाता है, जिससे बैटरी चार्ज होती है.
इलेक्ट्रिक हाइवे पर हर प्रकार की इलेक्ट्रिक व्हीकल चल सकती है. इस हाइवे पर इलेक्ट्रिक व्हीकल को इस्तेमाल करने वाले ग्राहकों को कई सुविधा मिलती है, जिसमें पेट्रोल पंप के तर्ज पर हाइवे पर ईवी चार्जिंग स्टेशन, बैटरी स्वैपिंग सुविधा मिलती है.
दोनों हाइवे के बीच के अंतर की बात करें तो इलेक्ट्रिक कॉरिडॉर में बैटरी के ऊपर निर्भरता कम रहती है जबकि इलेक्ट्रिक हाइवे पर निर्भरता बैटरी पर ही होती है. इसमें सिर्फ बैटरी चार्जिंग स्टेशन, बैटरी स्वैपिंग आदि की सुविधा होगी.
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