ब्लॉगः हमारा खून क्यों नहीं खौलता मुजफ्फरपुर शेल्टर होम की बच्चियों के कुचले जाने पर​

पब्लिक में इस बात को लेकर आक्रोश नजर नहीं आता. क्योंकि ये तमाम बच्चियां वंचित तबके की हैं.

Updated: July 25, 2018 11:43 AM IST

By India.com Hindi News Desk

ब्लॉगः हमारा खून क्यों नहीं खौलता मुजफ्फरपुर शेल्टर होम की बच्चियों के कुचले जाने पर​
फोटो पुष्यमित्र के फेसबुक वॉल से.

पुष्यमित्र

यह कहानी अजीब सी है. पिछले मई से ही छिट-पुट तरीके से सामने आ रही है. मगर इस कहानी को लेकर जो गुस्सा हमारे मन में जगना चाहिए, जिस तरह लोगों को सड़कों पर उतर कर सवाल खड़े करना चाहिए वह नहीं हो रहा. यह कहानी एक शेल्टर होम की है.

बिहार के मुजफ्फरपुर शहर में यह शेल्टर होम मानव तस्करी और दूसरे यौन अपराधों से बचाई गई लड़कियों की सुरक्षा के लिए खोला गया था. यहां छह से 16 साल की लड़कियां रखी गई थीं, ताकि वे यौन कुंठाओं से भरे इस समाज में राहत भरा सुरक्षित जीवन जी सके. मगर मुजफ्फरपुर के इस शेल्टर होम के संचालकों ने इसे यौनकर्मियों के कोठे में बदल कर रख दिया. जहां छोटी उम्र की ये बच्चियां नेताओं और अफसरों के शयनकक्षों में भेजी जाने लगीं.

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मई में सामने आए इस कांड के बारे में तीन-चार दिन पहले एक कड़वा तथ्य सामने आया है कि यहां रहने वाली 46 बच्चियों में से 29 बच्चियां यौन शोषण का शिकार हुई हैं. इनमें से कई तो नियमित रूप से जबरन यौन संबंध के लिए विवश की जाती थीं. मुजफ्फरपुर की सीनियर एसपी हरप्रीत कौर ने इस मेडिकल रिपोर्ट की पुष्टि की है. इसके बाद जाकर राज्य की विपक्षी पार्टियों ने इस मसले पर सरकार का विरोध करना शुरू किया है.

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खबर यह भी मिली है कि यौन हमलों का विरोध करने की वजह से एक बच्ची को मारकर उसी शेल्टर होम में दफना दिया गया था. परसों दिनभर वहां खुदाई चलती रही, ताकि उस बच्ची का शव निकाला जा सके. इस मामले में सबसे दुखद तथ्य यह है कि इस शेल्टर होम को चलाने वाला एक स्थानीय अखबार है. उसके मालिक ही इस शेल्टर होम के संचालक हैं.

अब जब मेडिकल रिपोर्ट आई है तब जाकर विपक्षी पार्टियों में थोड़ी सुगबुगाहट हुई है. मगर वह भी रस्मी है. सरकार कह रही है कि सीबीआई जांच की जरूरत नहीं है, हमारी पुलिस खुद देख लेगी. मगर जिस तरह से बड़े-बड़े लोग इस मामले में शामिल हैं, उससे लगता नहीं है कि बिहार पुलिस इस मामले की ठीक से तफ्तीश कर पाएगी. हालांकि सीबीआई का ट्रैक रिकॉर्ड भी बहुत बढ़िया नहीं है.

भागलपुर के सृजन घोटाले का ही क्या हुआ. उसकी तो सीबीआई जांच भी चल रही है. दुखद तथ्य यह भी है कि नीतीश राज में जितने बड़े स्कैंडल हैं, उनके पीछे कोई न कोई एनजीओ है.

विपक्षी दल के भी बहुत आक्रोशित नहीं होने की एक वजह यह है कि इसमें उनके नेता भी शामिल हो सकते हैं. पब्लिक में तो इस बात को लेकर जरा भी आक्रोश नजर नहीं आता. क्योंकि जाहिर सी बात है कि ये तमाम बच्चियां वंचित तबके की हैं. सरकार ने हमेशा की तरह चुप्पी ओढ़ ली है. इसलिए हमारे समय में, सूचना क्रांति के इस दौर में, इतनी घृणित खबर बिना किसी नतीजे के रूटीन दरयाफ्त में ढल रही है.

लेखक बिहार के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

डिस्क्लेमरः ब्लॉग में व्यक्त विचार निजी हैं.

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