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कदम बढ़ाओ, खुलने लगेंगे दरवाजे, जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए पढ़ें इस अरबपति बिजनेसमैन का एक्सपीरियंस

अनिल अग्रवाल कहते हैं कि मेरे सपने हमेशा हैसियत से कुछ आगे ही थे और एक के बाद एक...सच भी होते गए. इन्वेस्टर्स घाटे में चल रही कंपनियों को खरीदने से कतराते थे, लेकिन मुझे उनमें वृद्धि का अवसर दिखा...

Updated: June 28, 2022 5:17 PM IST

By Rajneesh

कदम बढ़ाओ, खुलने लगेंगे दरवाजे, जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए पढ़ें इस अरबपति बिजनेसमैन का एक्सपीरियंस
फोटो क्रेडिट: facebook/anilagarwal

लाइफ में सभी लोग अपने लिए बेहतर कैरियर की तलाश में रहते हैं. कुछ लोग सरकारी नौकरी की तलाश में रहते हैं तो कई लोग प्राइवेट सेक्टर की जॉब करते हैं. कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो नौकरी करने की जगह खुद का बड़ा बिजनेस खड़ा करना चाहते हैं. पढ़ाई, नौकरी और बिजनेस के दौरान लोग सफल और एक्सपर्ट्स लोगों की सलाह खोजते रहते हैं. ये सलाह बड़े काम की होती है. यदि आप भी खुद का बिजनेस करना चाहते हैं तो एक बहुत ही बड़े बिजनेसमैन और वेदांता समूह के फाउंडर और चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने अपना कुछ अनुभव शेयर किया है. उनके एक्सपीरियंस से आपको हिम्मत और सीख मिल सकती है..

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गाने के बोल बने प्रेरणा

अनिल अग्रवाल ने फेसबुक पर अपना अनुभव शेयर करते हुए लिखा कि जब मैं 14 साल का था, तब पिताजी मुझे एल्युमिनियम खरीदने के लिए हिंडाल्को फैक्ट्री ले जाते थे. हम ट्रेन पकड़ कर पटना से बनारस पहुंचते और फिर ठसाठस भरी टैक्सी की सवारी करते. टैक्सी की सवारी मुझे खास पसंद नहीं थी. लेकिन टैक्सी में अक्सर मोहम्मद रफी का गाया गाना ‘वो कौन सी मुश्किल है…’ बजा करता था. मुझे पता नहीं था कि इसके बोल मेरे जीवन की प्रेरणा बन जायेंगे. उस समय का एक छोटा सपना केवल यही था कि मैं कम सवारियों वाली टैक्सी में थोड़ा आराम से सफर करूं लेकिन चीज़ें बदलने वाली थीं…

फैक्ट्री मालिक बनने का कर लिया था वादा

उन्होंने बताया कि मुझ जैसे छोटे शहर का लड़का जब बाबू जी का हाथ थामे इस विशालकाय फैक्ट्री को देखता तो आँखें चमक उठती. चमचमाती मशीनें और वर्कर्स के काम का लयबद्ध संगीत. फैक्ट्री का भव्य स्वरूप देख मैंने खुद से एक वादा किया कि एक दिन मैं भी ऐसी ही एक फैक्ट्री का मालिक बनूंगा.

अनिल अग्रवाल ने बताया कि 1970 के दशक में, बाबू जी के सहयोग से, मैंने मैटल स्क्रैप का बिजनेस शुरू किया. बाजार कैसे काम करता है, इसका कोई वास्तविक अनुभव तो था नहीं. मैंने ये सोच सोच कर अपनी नींद हराम कर दी कि अब क्या किया जा सकता है. मैं उन लोगों की खोज में लग गया जो इससे मिलता जुलता कुछ कर रहे थे- बस सीखने और समझने के लिए. और फिर एक दिन, सीखी गई बातों को काम में लाने का समय आ गया.

उन्होंने लिखा कि मैंने मद्रास एल्युमिनियम हासिल करने के लिए भरोसे की छलांग लगाई. कंपनी भारी घाटा झेल रही थी. लेकिन पास में ही एक बॉक्साइट खदान भी थी जिससे उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में मदद मिल सकती थी. मैंने पावर प्लांट सप्लायर की तलाश में कई दिन बिताए. ऐसा सप्लायर जो मुझसे कोई डाउन पेमेंट नहीं मांगे. आखिर में, मैं खोज में कामयाब रहा. हमने मिलकर प्लांट की उत्पादन क्षमता लगभग 10,000 से बढ़ाकर 25,000 टन कर दी.

आराम नहीं करने दे रहा था सपना

इसके बाद आया बाल्को (भारत एल्युमिनियम). ये भारत की पहली निजी निवेश कंपनी थी . ज्यादातर इन्वेस्टर्स इससे दूर रहना चाहते थे. लेकिन मेरा विचार कुछ अलग था. मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं था. रिसोर्सेज के मामले में भी मेरे हाथ खाली थे. लेकिन मेरे पास एक मजबूत भरोसा और एक बड़ा सपना था जो मुझे आराम नहीं करने दे रहा था. बड़े बैंकों ने मुझ पर विश्वास किया और सभी एक्विजिशन के लिए फंड देने को तैयार थे. बाल्को आखिर में हमारा था.

बाल्को के बाद आया वेदांता एल्युमिनियम. अनिल अग्रवाल कहते हैं कि ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री, बीजू पटनायक चाहते थे कि मैं (अनिल अग्रवाल) कालाहांडी में एक एल्युमिना संयंत्र स्थापित करूं. कालाहांडी उस समय सबसे कम विकसित क्षेत्रों में से एक था. इसका उद्देश्य कालाहांडी को मुख्य भूमि और झारसुगुडा में संयंत्र के साथ इंटीग्रेट करना था. श्री नवीन पटनायक ने इसे पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

कदम बढ़ाओ, दरवाजे खुलने लगेंगे

उन्होंने कहा कि एक दिन, मैं और मेरे सहयोगी उस साइट पर पहुंचे. खाली जेबों में हाथ घुसाए, रेलवे ट्रैक पर बैठे सोच रहे थे कि हम बिना रिसोर्सेज के इस प्लांट को कैसे बनाएंगे. लेकिन हमने ये कर दिखाया. मैं हमेशा कहता हूं कि, “तुम आगे बढ़ते रहो, एक बार में एक कदम बढ़ाओ और देखो… दरवाजे खुलने लगेंगे, कुछ भी असंभव नहीं लगेगा.

जमीन से शुरुआत करने वाले एक लड़के के रूप में, मुझे सीख मिली थी- “जितनी चादर हो, उतने ही पांव पसारो.” लेकिन मेरे सपने हमेशा हैसियत से कुछ आगे ही थे और एक के बाद एक…सच भी होते गए. इन्वेस्टर्स घाटे में चल रही कंपनियों को खरीदने से कतराते थे, लेकिन मुझे उनमें वृद्धि का अवसर दिखा. और कुछ इस तरह धीरे-धीरे वेदांता रिसोर्सेज आकार लेने लगा था. आज की तारीख में वेदांता एक बड़ी कंपनी है और इसमें हजारों लोग काम करते हैं.

अनिल अग्रवाल का ये भी मानना है कि ‘जिंदगी में सबसे बड़ी अड़चन तब आती है जब आप कोई भी रिस्क लेना बंद कर देते हैं.

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