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Delhi Pollution Today: बिगड़ने लगी दिल्ली की आबो-हवा, 300 के पार पहुंचा एयर क्वालिटी इंडेक्स
आईएमडी में पर्यावरण और अनुसंधान केंद्र के प्रमुख वी. के. सोनी ने बताया, 17 और 18 अक्टूबर को बारिश की भविष्यवाणी की गई है.
Delhi Pollution Today: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों से पता चला है कि राष्ट्रीय राजधानी की वायु गुणवत्ता (air quality index) शनिवार को खराब श्रेणी के निशान को छू गई और इसका वायु गुणवत्ता सूचकांक 300 को पार कर गया. हालांकि, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, शहर की वायु गुणवत्ता जो आमतौर पर इस समय खराब होने लगती है, उसे बहुत खराब से गंभीर श्रेणी में आने में थोड़ा अधिक समय लग सकता है. आईएमडी में पर्यावरण और अनुसंधान केंद्र के प्रमुख वी. के. सोनी ने बताया कि 17 और 18 अक्टूबर को बारिश की भविष्यवाणी की गई है.
उन्होंने आगे कहा, इस साल मानसून 10 दिनों की देरी से आया था और सितंबर के महीने में हमने बहुत अच्छी बारिश देखी. इसलिए, हमारे पास हवा की गुणवत्ता बेहतर थी. 4 अक्टूबर तक हमारे सामने 33 एयर क्वालिटी इंडेक्स था, उसके बाद यह बिगड़ना शुरू हो गया. कल तक ( शुक्रवार) यह (वायु गुणवत्ता) मध्यम श्रेणी में थी और अब यह खराब श्रेणी में है, लेकिन हवाएं बदल जाएंगी और हम उम्मीद कर रहे हैं कि आज रात से हवा की गुणवत्ता में सुधार होगा. उन्होंने कहा, 18 अक्टूबर तक, यह मध्यम श्रेणी में रहेगा और फिर हम उम्मीद कर रहे हैं कि यह फिर से खराब हो जाएगा.
देश के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में सर्दियों की शुरूआत और मानसून की वापसी के साथ, हवा की दिशा पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर बदल जाती है. इसके साथ ही, जैसे-जैसे तापमान गिरता है, प्रदूषक वायुमंडल की ऊपरी परत में उतनी स्वतंत्र रूप से और व्यापक रूप से फैलने में असमर्थ होते हैं, जितना कि गर्मी के मौसम में होता है, जिससे हवा में प्रदूषकों की उच्च सांद्रता होती है.
उपरोक्त के अलावा, दिल्ली-एनसीआर की अपनी धूल और वाहनों से होने वाला प्रदूषण; पड़ोसी राज्यों पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में पराली जलाना; तेज हवा के साथ राजस्थान से धूल भी एक मुख्य कारण है, जो कि प्रदूषण को बढ़ाता है. यही नहीं, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देश भी राजधानी शहर में उच्च स्तर के जहरीले प्रदूषण का कारण बनते हैं.
डॉक्टरों ने कहा है कि बिगड़ती हवा की गुणवत्ता और हवा में प्रदूषकों के बढ़ते स्तर से सांस की बीमारी और विकारों की संख्या और गंभीरता बढ़ जाती है. इसका सबसे अधिक बुरा असर बुजुर्ग और कमजोर या पहले से किसी बीमारी से जूझ रही युवा आबादी पर भी पड़ता है.
द एनर्जी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (टीईआरआई) द्वारा 400 से अधिक बच्चों पर किए गए एक शोध में पाया गया कि उनमें से 75.4 प्रतिशत ने सुबह के समय सांस फूलने, 24.2 प्रतिशत आंखों में खुजली, 75.4 प्रतिशत नियमित रूप से छींकने या नाक बहने और 20.9 प्रतिशत को खांसी की शिकायत की.
(इनपुट आईएएनएस)