स्काईटच फाउंडेशन और दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन साथ मिलकर विमेंस मैराथन सीजन 4 का आयोजन कर रहे हैं, जो कि आर्ट्स फैकल्टी, नार्थ कैंपस दिल्ली में 22 जनवरी 2018 को होगा. इस मैराथन की टैग लाइन है A run for tax free wings and woman empowerment. ये मैराथन गर्ल्स के लिए है. जो कि सेनिटरी नैपकिन पर लगने वाले टैक्स पर सवाल खड़ा करता है. Also Read - अक्षय कुमार से लेकर सैफ अली खान तक, इन बॉलीवुड सितारों को किया गया इस हालत में स्पॉट- Video
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सेनिटरी नैपकिन पर लगने वाला ये टैक्स सालाना 12 महीनों में एक बार लगता है लेकिन 39 वर्षों से इस पूरे प्रक्रिया पर कोई कंट्रोल नहीं है. ये दौड़ उन सभी महिलाओं को एकसाथ लाने के लिए है. इसका दूसरा मकसद बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं और स्वच्छ भारत मिशन को आगे बढ़ाना भी है. इस मैराथन को IMS Group स्पॉन्सर कर रहा है. Also Read - राम मंदिर के लिए अक्षय कुमार ने दिया चंदा, कहानी के जरिए कहा, 'अब योगदान की बारी हमारी है.'
इस दौड़ की खास बात ये है कि इसमें बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार इसके चीफ गेस्ट होंगे. मैराथन जीतने वाले को कई शानदार पुरस्कार भी दिए जाएंगे. फर्स्ट प्राइज के तौर पर स्कूटी, दूसरा प्राइज लैपटॉप, तीसरा प्राइज स्मार्टफोन है. एक नज़र देखिए फिल्म का ट्रेलर
डूसू स्काईटच वूमन मैराथन सीजन 4 का आयोजन स्काईटच फाउंडेशन के संस्थापक जावेद खान, प्रेसिडेंट ममता माथुर और डूसू सचिव महामेधा नागर कर रही है. महामेधा ने अपने फेसबुक पेज पर अक्षय कुमार के फिल्म की पोस्टर वाला फोटो और मैराथन के लिए रजिस्ट्रेशन फॉर्म भी शेयर किया है. ये रजिस्ट्रेशन फ्री ऑफ कॉस्ट है. कोई भी लड़की या महिला इसमें भाग ले सकती है. Women Empowerment के लिए होने वाला यह मैराथन ऑर्ट फैक्लटी में दोपहर 2 बजे शुरु होगा. www.skytouchfoundation.org इस वेबसाइट पर जाकर भी आप रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं
अगर आप भी महिलाओं के लिए कुछ करना चाहते हैं तो अक्षय कुमार से सेनेटरी पैड बनाना सीखें
बता दें कि अक्षय कुमार की फिल्म ‘पैडमैन’ 25 जनवरी को रिलीज हो रही है जिसकी कहानी सेनिटरी नैपकिन आधारित है. फिल्म की कहानी एक ऐसे आदमी की है जिसने महिलाओं को होने वाले मासिक धर्म के बारे में लोगों को सिर्फ जागरूक ही नहीं किया बल्कि उससे होने वाली परेशानियों को भी दूर करने की कोशिश की.
अरुणाचलम मुरुगनाथम नाम के इस शख्स ने सस्ते दामों पर औरतों के लिए सैनेटरी पैड बनाने शुरू किए. हालांकि इसके लिए उन्हें समाज का विरोध भी झेलना पड़ा था.