
Beating Retreat: 'ए मेरे वतन के लोगों' इस डब्बी पर लिखा गया था सबसे पहले, लता मंगेशकर का गाना सुनकर रो दिए थे नेहरू
इस साल के बीटिंग रिट्रीट समारोह का समापन ‘अबाइड विद मी’ की धुन के बजाय ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ से होगा. हम आपको आज इसी मशहूर गाने की दिलचस्प कहानी बताएंगे.

नई दिल्ली: ‘बीटिंग रिट्रीट’ सदियों पुरानी सैन्य परंपरा है. इस साल 29 जनवरी को होने वाले ‘बीटिंग रिट्रीट’ समारोह (Beating Retreat ceremony 2022) में कुछ बदलाव किए गए हैं. महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के पसंदीदा ईसाई स्तुति गीतों में से एक ‘‘अबाइड विद मी’’ (Abide with Me) की धुन को इस साल हटा दिया गया है. सेना में देश के प्रति मोहब्बत को और ज़्यादा उजागर करने के लिए अब देशभक्ति से भरपूर हिंदी गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ (Aey Mere Watan ke Logon) की धुन बजाई जाएगी. एएनआई के मुताबिक इस साल के बीटिंग रिट्रीट समारोह का समापन ‘अबाइड विद मी’ की धुन के बजाय ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ से होगा. हम आपको आज इसी मशहूर गाने की दिलचस्प कहानी बताएंगे.
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‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाने का एक दिलचस्प इतिहास (Story Behind ‘Aey Mere Watan ke Logon’) रहा है. आज भी इस गाने को सुनकर हर भारतीय भावुक हो जाता है. इस गाने से रगों में देशभक्ति उबाल मारने लगती है. क्या आपको पता है यह गाना कब और क्यों लिखा गया था? अपने ज़माने के मशहूर कवि प्रदीप ने इस गाने को लिखा था. दरअसल भारत-चीन युद्ध के शहीदों को याद करते हुए इस गाने का जन्म हुआ. कहा जाता है कि उस युद्ध के बाद भारतीयों का मनोबल बढ़ाने के लिए इस गाने को लिखा गया.
कवि प्रदीप का ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाने लिखते वक़्त का एक किस्सा काफी मशहूर है. हर दौर में राजनीति ने साहित्य और कविता का साथ मांगा है. भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार ने कवियों से कहा कि कुछ ऐसा लिखिए जिससे देशभर में देशभक्ति की भावना उफान मारने लगे. इसी सिलसिले में ये काम कवि प्रदीप के पास आया. आपको जानकर हैरानी होगी इस गाने को सबसे पहले कहां लिखा गया है.
बताया जाता है कि एक बार कवि प्रदीप माहिम बीच पर टहल रहे थे और तभी उनके दिमाग में कोई लाइन आई. ऐसे में उन्होंने किसी राहगीर से पेन मांगी और अपने सिगरेट का डिब्बा फाड़कर उलट दिया और उसपर लिखने लगे. घर जाते ही उन्होंने इस गाने को पूरा कर लिया. अब बात आती है इस गाने में किसकी आवाज़ दी जाए. उस दौर में तीन महान आवाज़ें हुआ करती थीं. मोहम्मद रफ़ी, मुकेश और लता मंगेशकर. इस का रिहर्सल सबसे पहले आशा भोंसले के साथ शुरू किया गया मगर कवि प्रदीप चाहते थे कि इस गाने में लता मंगेशकर की आवाज़ आये. खैर आशा भोंसले की तबीयत बिगड़ने के बाद ये गाना लता मंगेशकर को दे दिया गया.
इस गाने को जब पहली बार कॉन्सर्ट में लता मंगेशकर ने गाया था तब हर तरफ इसकी चर्चा हो रही थी. इस इवेंट में पंडित जवाहर लाल नेहरू भी मौजूद थे. लता मंगेशकर की आवाज़ में ये गाना सुनकर नेहरू जी की आँखों से आंसू छलक गए और वह भावुक हो गए थे.
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