
Lata Mangeshkar Death: किसी की बुराई नहीं सुनती थीं लता दीदी, याददाश्त ऐसी जैसे दिमाग के पन्नों पर छपे हों शब्द
lata mangeshkar death: कलाओं में गहरी रुचि रखने वाले हिन्दी कवि, सम्पादक और संगीत अध्येता यतीन्द्र मिश्र ने बताया, ‘लता दी से हमारे पारिवारिक संबंध थे.

lata mangeshkar death: भारत की स्वर कोकिला लता दीदी नहीं रहीं. रविवार सुबह मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनका निधन हो गया.
Also Read:
कलाओं में गहरी रुचि रखने वाले हिन्दी कवि, सम्पादक और संगीत अध्येता यतीन्द्र मिश्र ने बताया, ‘लता दी से हमारे पारिवारिक संबंध थे. उनसे मुलाकात के बाद मुझे ये ख्याल आया की उनकी संगीत यात्रा पर एक किताब लिखी जानी चाहिए. गिरिजा देवी, बिस्मिल्ला खां साहब पर किताब लिखने के बाद ये कसक और तेज़ हो गई.लता जी का मैं बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूं. उन्हें जानना एक हद तक हिन्दी फ़िल्म संगीत इतिहास के पन्ने पलटने जैसा है. मुझे लगता था कि हिंदी सिनेमा, संगीत और उनसे जुड़े कलाकारों पर स्तरीय पुस्तकों का अभाव है. अगर आपको किसी के बारे में कोई रचना पढ़नी होती है तो उसके लिए आपको अंग्रेजी भाषा का सहारा लेना होता है. मैं विनम्रता से ये बात कह रहा हूं, भले ही इंडस्ट्री में कई अच्छी पत्रिकाएं मौजूद हैं लेकिन एक अच्छे मानक इंटरव्यू पढ़ने के लिए आपको काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है. ये सब सोचकर मैंने लता जी की किताब पर काम किया. 28 सितंबर, 1929 को इंदौर में जन्मीं लता मंगेशकर पर हाल ही में एक किताब ‘लता सुर-गाथा’ प्रकाशित हुई है.
यतींद्र मिश्र ने बताया, लता जी से किताब लिखते वक्त उनसे कई विषयों पर बातचीत हुई. मैंने उनसे 365 दिनों के हिसाब से हजारों दिनों में कई सौ घंटों बातें की. मैंने उनसे ये तक पूछा गांधी जी की प्रार्थना सभा में आपको गाने का कभी मौका मिला, या फिर बेगम अख्तर से जब आपकी मुलाकात हुई तो किस तरह का अनुभव रहा. ऐसे तमाम सवालात थे जो लता जी किताब लिखने के दौरान मैंने उनसे किए. मुझे नहीं लगता ऐसे सवाल उनसे पहले किसी ने किए होंगे. मेरा कहने का मकसद ये है कि लता जी ने एक भरा पूरा जीवन जिया है. उन्होंने पूरी फिल्म इंडस्ट्री देखी है. आजादी से लेकर अभी तक सभी मंत्रियो का शासन देखा है. मुझे लगा कि उनसे सामाजिक, राजनीतिक दबाव से संबंधित सवाल भी पूछने चाहिए. उनकी पसंद नापसंद से संबंधित सवाल पूछने चाहिए. वो मैंने पूछे.
इंडिया.कॉम ने जब सवाल किया कि इतनी मुलाकातों के बीच क्या कभी उन्हें कभी महसूस हुआ कि लता दीदी को अपना घर नहीं बसा पाने का कोई दुख है. यतीन्द्र साहब ने जवाब में कहा, ये बेहद ही व्यक्तिगत प्रश्न था, मैंने ये सवाल उनसे कभी नहीं पूछा. न ही जानने की कोशिश भी की. न ही मुझे इस प्रश्न को उनसे पूछे जाने की जरूरत महसूस हुई.
यतीन्द्र मिश्र ने बताया लता दीदी को किसी के बारे में गॉसिप करना पसंद नही था. वो किसी भी व्यक्ति की बुराई सुनना पसंद नहीं करती. वे शांति पसंद महिला थीं. अपने परिवार के साथ वक्त बिताना उन्हें पसंद था. लेकिन ये उनकी महानता है कि उन्होंने कभी समवयस्की कलाकार के प्रति ईर्ष्या का भाव नहीं दिखाया, कोई बुरी बात नहीं कही.उनकी याददाश्त बहुत तेज थी. अगर आपने कभी एक सवाल दोबारा उनसे पूछा, या फिर कभी घुमाकर पूछने की कोशिश की, या आपको याद नहीं रहा. तो वो तुरंत टोक देगीं ये सवाल तो आपने मुझसे पूछा था.
उन्हें अपने सारे गीत. उनसे जुड़ी सारी घटनाएं अभी भी ऐसे याद हैं जैसे सब रिकार्ड करके रखे हों. ये मेरा अपना अनुभव रहा है उनसे बात करके. इसलिए वो किताब, ‘लता सुर गाथा’ भी रोचक बन पाई. मैंने उनसे सवाल भी किया, दीदी आपको इतना याद कैसे रहता है, उन्होंने कहा, बेटा, इतनी उम्र. इतना फासला बीत गया लेकिन मुझे अभी भी लगता है जैसे कल की बात हो. यही उनमें खास बात है. यही उनकी एनर्जी है. संगीत को लेकर उनका उत्साह कभी कम नहीं हुआ. आज भी उनकी आवाज़ में वही खलिश थी. आपको फोन पर भी गुनगुनाकर कोई चीज बताएंगी तो आपको लगेगा ये उसी महान पार्श्व गायिका की आवाज है जिसे हमनें 70..80 के दशक में बहुत सुंदर ढंग से सुन रखा है. उनकी ये बातें मुझे बेहद पसंद है. दीदी बड़ी मानवीय स्त्री है.
ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें फेसबुक पर लाइक करें या ट्विटर पर फॉलो करें. India.Com पर विस्तार से पढ़ें मनोरंजन की और अन्य ताजा-तरीन खबरें