
'लता दीदी ने हमें कभी नौकर नहीं माना, उनके जैसा कोई नहीं हो सकता'
लता मंगेशकर की घरेलू सहायकों ने कहा- मैं उनके साथ इंदिरा गांधी के समय से रही हूं, दीदी कभी गुस्सा तक नहीं हुईं.

मुंबई: लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) के निवास पर यहां काम करने वाले घरेलू सहायकों ने कहा कि कोई भी कभी उनकी ‘‘दीदी’’ की तरह नहीं हो सकता, जिन्होंने उन्हें कभी नौकर नहीं माना और कभी उनसे गुस्से से बात नहीं की. लता मंगेशकर का रविवार को 92 वर्ष की आयु में मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया. गायिका के घरेलू सहायकों में से एक सुमन साल्वे ने कहा कि जब पांच महीने पहले उन्हें दिल का दौरा पड़ा था, तो मंगेशकर ने खुद डॉक्टरों को फोन किया और यह सुनिश्चित किया कि उन्हें अच्छा उपचार मिले.
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साल्वे ने शिवाजी पार्क में मंगेशकर के रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए आरक्षित क्षेत्र में इंतजार करते हुए भीगी आंखों से कहा, ‘‘जब मैं उनके आवास पर थी, तो मुझे दिल का दौरा पड़ा था. दीदी ने मेरी जान बचायी थी, लेकिन अब वह खुद हमेशा के लिए चली गयी हैं.’’ मंगेशकर का शाम को शिवाजी पार्क में अंतिम संस्कार कर दिया गया. महाराष्ट्र की पारंपरिक नौ यार्ड की साड़ी ‘नौवारी’ पहने हुए साल्वे अपनी ‘दीदी’ को अंतिम विदाई देने का बेसब्री से इंतजार करती दिखीं. उन्होंने कहा कि वह पिछले तीन दशकों से मंगेशकर के आवास पर काम कर रही थी.
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले की रहने वाले साल्वे ने कहा, ‘‘मैं इंदिरा गांधी के वक्त से उनके घर पर काम करती रही हूं, जब दीदी की मां ‘माई’ वहां थी.’’ साल्वे ने कहा कि उन्होंने दिग्गज गायिका को आखिरी बार उनके घर पर एक महीने पहले देखा था, जब वह इलाज के बाद वहां गयी थीं. उन्होंने कहा, ‘‘दीदी कभी हमारे साथ नौकर जैसा बर्ताव नहीं करती थीं. वह प्यार से मुझे ‘मौसीबाई’ बुलाती थीं. उन्होंने कभी हमसे गुस्से में बात नहीं की. इस दुनिया में दीदी जैसा कोई इंसान नहीं है और कोई भी कभी उनके जैसा नहीं हो सकता.’’
साल्वे ने कहा कि मंगेशकर घरेलू सहायकों से हमेशा सम्मानजनक तरीके से बात करती थीं. उन्होंने कहा कि मंगेशकर ने उन्हें अपने आवास प्रभु कुंज आते रहने के लिए कहा था, जबकि दिल का दौरा पड़ने के बाद उनकी चिकित्सीय स्थिति ऐसा करने की अनुमति नहीं देती है. साल्वे के अनुसार, मंगेशकर उनकी छोटी-छोटी जरूरतों का भी ध्यान रखती थीं और उनके साथ कभी नौकरों जैसा बर्ताव नहीं किया और उन्हें कपड़े तथा भोजन दिया करती थीं.
एक अन्य घरेलू सहायिका पुष्पा नबार ने कहा, ‘‘दीदी जैसा कोई नहीं.’’ उन्होंने कहा कि वह पिछले दो दशकों से मंगेशकर के घर काम करती रही हैं और महामारी के कारण लंबी छुट्टी पर जाने से पहले वह उनकी देखभाल करती थीं. पुष्पा ने कहा कि मंगेशकर के घर पर छह से सात लोग काम करते हैं और सभी उनके निधन से बहुत दुखी हैं.
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