
Padmaavat Movie Review: हर नायाब चीज को अपना बताने वाला 'खिलजी', 'पद्मावती' से हार गया
खिलजी को बिना किसी हथियार से हराती है 'पद्मावत' की शोर्य कहानी.

कलाकार: दीपिका पादुकोण,रणवीर सिंह,शाहिद कपूर,अदिति राव हैदरी
निर्देशक संजय लीला भंसाली
अवधि: 2 घंटा 44 मिनट
स्टार: 4.5
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जायसी की कल्पना और संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावत’. ठीक वैसी ही थी जैसे एक उड़ान को चमकीले पंख दे देना. खूबसूरत रानी जिसपर कोई भी फिदा हो सकता है. एक विलेन अलाउद्दीन खिलजी जिसे पराई स्त्री पर बुरी नज़र डालने का खामियाजा भुगतना पड़ता है. उसूलों का पक्का राजपूत राजा रत्नसिंह जो मर जाता है लेकिन दुश्मनों के सामने घुटने नहीं टेकता. युद्ध का शंखनाद. हाथी, घोड़े. तलवारबाजी. लड़ने की रणनीति. धूल का गुबार. नगाड़े. गोश्त. पगड़ी. घूमर. संस्कार. सबकुछ था, जो एक ऐतिहासिक फिल्म में देखा जा सकता था. कुछ नहीं देखने का मिला तो वो था विरोध का कारण.
बवाल और तमाम विरोधों के बीच मीडिया को फिल्म पद्मावत दिखाई गई. ऐसा पहली बार था जब पुलिस प्रोटेक्शन की मौजूदगी में कोई फिल्म देखी जा रही थी. सिनेमाहॉल में बैठे सभी लोगों ने आंखों पर काले चश्में गढ़ लिए. मोबाइल ऑफ कर लिए गए. जिससे जायसी की कल्पना को बड़े पर्दे पर साकार होते देखा जा सके. संजय लीला भंसाली की फिल्म थी, कुछ नया देखने की ललक के साथ सब अपनी सीट पर जमकर बैठ गए.
फिल्म शुरू होती है. शिकार करते हुए रानी की एंट्री होती है. जोकि होनी भी चाहिए. क्षत्राणी हैं अपने शील और धर्म की रक्षा करने के लिए कंगन उतार कर तलवार उठाने में भी नहीं हिचकती. रानी को उसूलों के पक्के राजा रत्नसिंह से प्रेम हो जाता है और फिर दोनों शादी करके चितौड़गढ़ लौट जाते हैं. रानी को चितौड़ के गुरु का आशीर्वाद दिलाने के लिए राजा मंदिर ले जाते हैं. गुरु भी पद्मावती की सुंदरता और गुणता के कायल हो जाते हैं. वे अपनी उम्र और पद की गरिमा भूलते हुए एक ऐसी गलती कर देते हैं जिसे देखकर किसी को भी धक्का लगे और विश्वास के टुकड़े हो जाएं.
दूसरी और लड़कियों के जिस्म से अपनी हवस मिटाता अलाउद्दीन खिलजी. जुनूनी. सनकी. गोश्त खाता. आंखों में एक तरह का पागलपन. हर नायाब चीज पर कब्जा करने की हसरत रखता. दरअसल, सारा मामला ख्वाहिशों का था. ग़ालिब का एक शेर है. हज़ारों ख्वाहिशे ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले. अलाउद्दीन के साथ ऐसा ही कुछ था. राजा बनने का सपना देखना. सल्तनत पाने के लिए अपने चाचा को मार देना. हवस मिटाने के लिए उसकी बेटी से शादी कर लेना और फिर…..पद्मावती की खूबसूरती के चर्चे सुनते ही उसे अपना बनाने के लिए चितौड़ पर चढ़ाई कर देना.
लेकिन रानी पद्मावती को हासिल करना भी इतना आसान कहां था. उनकी सूझबूझ. कूटनीति. बिना किसी हथियार के उस खूंखार और एय्याश खिलजी को मात दे रही थी जिससे वो बुरी तरह बौखला गया था. हर बार खिलजी का पासा उसे ही मात देता, हार को स्वीकार करना खिलजी के बस में नहीं था. लेकिन फिर पद्मावती को पाने का चारा क्या था? इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी ज्यादा बताकर हम आपके फिल्म देखने का मजा किरकिरा नहीं करेंगे.
खास बातें- फिल्म में चित्तौड़ के सूरमा गोरा और बादल की शहादत को भी सम्मान से दर्शाया गया है. भारी लहंगे. बड़ी नथ. आंखों में पानी तो कभी अंगारे लिए दीपिका पादुकोण बेहद खूबसूरत दिखी हैं. रणवीर सिंह की सनक और जुनूनी अभिनय काबिले तारीफ है. शांत और उसूलों के पक्के राजूपताना भेष में शाहिद कपूर भी अच्छे लगे हैं. जहां एक ओर अलाउद्दीन को खूंखार.सनकी.व्याभिचारी दिखाया गया है वहीं मोहब्बत को लेकर उसकी बेबसी को भी दर्शाया गया है. अपने गुलाम मलिक काफूर से इमोशनल होकर जब खिलजी पूछता है- मलिक बता मेरे हाथ में प्यार की कोई लकीर है, नहीं तो तू क्या ऐसी कोई लकीर बना सकता है? काफूर अपनी मालिक की ये बात सुनकर रोने लगता है. फिल्म के दमदार डायलॉग आपका दिल जीत लेते हैं.
कुछ और भी – संजय लीला भंसाली की फिल्में भव्यता के लिए मशहूर हैं. थ्रीडी में उभरते सारे इफेक्ट्स देखने लायक है. पद्मावती की खूबसूरती और वक्त पड़ने पर कूटनीति आपको उत्साह से भर देगी. राजपूत धोखेबाज़ दुश्मन से भी धोखा नहीं करता. कई ऐसे डायलॉग है जिसे सुनकर खून दौड़ने लगता है. राजस्थानी पारंपरिक संगीत, महारानी के सम्मान और बलिदान को समर्पित ये फिल्म सभी लोगों के लिए देखने लायक है. फिल्म का एक डायलॉग है रूप देखने वालों की आंखों में होता है. हमारा भी यही कहना है बेकार का बवाल है. सकरात्मक सोच के साथ जाइए ये फिल्म आपको निराश नहीं करेगी.
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