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पुण्यतिथि: ओशो की कौन सी कहानी सुनकर संन्यास लेने के लिए बैचेन हो गए थे विनोद खन्ना, लोगों ने कहा था 'पागल'

विनोद खन्ना ने सन्यास लेने पर कहा था- मैं बहुत हाइपर एक्टिव था. ज़रा ज़रा सी बात पर गुस्सा आ जाता था. गुस्सा, दिमाग को कंट्रोल करने लगता था. मेडिटेशन करने से दिमाग शांत हो जाता था. फिर विनोद ने तय किया कि उन्हें अपने मन का स्वामी बनना है गुलाम नहीं और...

Updated: April 27, 2022 7:26 AM IST

By Pooja Batra

पुण्यतिथि: ओशो की कौन सी कहानी सुनकर संन्यास लेने के लिए बैचेन हो गए थे विनोद खन्ना, लोगों ने कहा था 'पागल'

बॉलीवुड को उस वक्त धक्का लगा जब पता चला कि इंडस्ट्री के सबसे हैंडसम हीरो ने संन्यास ले लिया है वो भी उस वक्त जब उसका करियर पीक पर था. विनोद खन्ना को भगवा चोले में देखकर खुद उनके परिवार वालों को सदमा पहुंचा था. लोगों ने कई तरह के कयास लगाए. कुछ लोग हंस रहे थे. कुछ हैरान थे. कुछ लोग पागल समझने लगे थे. कुछ ने ये भी कहा कि ये एक नाटक है. विनोद खन्ना ने एक साक्षातकार में खुद अपने अंदर हो रही इन उलझनों को बताया है. ओशो की एक ऐसी कहानी जिसनें उन्हें खुद को जानने के लिए प्रेरित किया और विनोद खन्ना ने संन्यास लेने का फैसला कर लिया.

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वो कहानी थी एक झेन गुरु की….एक चोर भागता हुआ निकल जाता है. वहां पर एक झेन गुरु ध्‍यान में बैठा हुआ था. पुलिस आकर इस गुरू को ही चोर समझकर पकड़ ले जाती है. और जेल में बंद कर देती है. गुरु कहता है, जैसी उसकी मर्जी वह यह भी नहीं कहता कि मैंने चोरी नहीं की यह सोचता है उसमे आस्‍तित्‍व का कोई राज है. अब जेल में भी गुरु ध्‍यान में लीन रहने लगा. उसके कारण और कैदी भी ध्‍यान करने लगे. 3-4 साल बाद असली चोर पकड़ा गया. पुलिस ने झेन गुरु को छोड़ दिया; कहने लगे, हमें माफ कर दें. गुरु ने कहा, नहीं,अभी मुझे मत छोड़ो. मेरा काम पूरा नहीं हुआ है.यह कहानी सुना कर ओशो ने कहां हम सभी जेल में है. कोठरी में है. हम एक सी सात बाई सात की कोठरी है. चाहे वह जेल के अंदर हो चाहे बाहर हो. जब तक हम समग्रता से अपना काम नहीं करते तब तक कोठरी से बाहर नहीं हो सकते.

फाइल फोटो

विनोद खन्ना ने ओशो मैग्जीन को दिए एक इंटरव्यू में बताया. ‘ मेरा मन शुरू से ही कुछ और कहता था. मुझे शांति पसंद थी. बचपन से ही साधु संत अच्छे लगते थे. करीबन आठ साल की उम्र से ही मैंने साधुओं के पास जाना शुरू कर दिया था. किसी भी साधु के पास जाकर बैठ जाता. उन्हें अपना हाथ दिखाता. उनकी तरह ध्यान में बैठ जाता. जब बड़ा हुआ. कॉलेज गया. ये सारी कहानी एक अतीत बन गई. मेरे अंदर ख्‍वाहिश जाग उठी के मैं अभिनेता बनूं. पिता के विरोध के बावजूद मैं बॉलीवुड गया. किस्मत अच्छी थी. सफलता हासिल हुई. फिल्में चल निकलीं. जब कामयाब हो गया. फिर मन में उथल-पुथल सी होने लगी. बचपन वापस लौट आया. मैं एक दुकान में गया और मैंने परमहंस योगानंद की वह मशहूर किताब खरीद ली: ऑटोबायोग्राफी एक योगी—एक ही रात में उसे पुरी पुस्‍तक को पढ़ गया. योगानंद जी की फोटो देख कर मुझे लगा मैं इस आदमी को जानता हूं.

महेश भट्ट ने ओशो तक जाने का रास्ता दिखाया था
फिर मेरी ध्‍यान की खोज शुरू हुई. थोड़ी बहुत शांति आ जाती है लेकिन उसके बाद कुछ नहीं है. उन दिनों हमारे क्षेत्र के विजय आनंद ओशो से संन्‍यास ले चुके थे. महेश भट्ट भी ओशो को सुनते बहुत थे. ये दोनों मेरे अच्‍छे दोस्‍त थे. उनके साथ में पूना आया और ओशो की कुछ कैसेट खरीदे. आश्‍चर्य की बात, उन प्रवचनों में मुझे उन सारे प्रश्‍नों के उत्‍तर मिल गए जो मेरे मन में चलते थे.

फाइल फोटो

परिवार वालों की मौत से संन्यास की तरफ झुकाव बढ़ा
विनोद जी ने बताया दिसंबर 1974 की बात है. मैं ओशो के शब्‍दों को तो सुनता रहा लेकिन अस्‍तित्‍व चाहता था, यह संबंध सिर्फ दिमागी न रह जाये. उसने मुझे सीधे जिंदगी की जलती हुई सच्‍चाई का सामना करवा दिया. मेरे परिवार में छह-सात महीने में चार लोग एक के बाद एक मर गए. उनमें मेरी मां भी थी. मेरी एक बहुत अजीज बहन थी. मेरी जड़ें हिल गई. मैंने सोचा, एक दिन मैं भी मर जाऊँगा और मैं खुद के बारे में कुछ भी नहीं जानता हूं.दिसंबर 1975 में एकदम मैंने तय किया कि मुझे ओशो के पास जाना है. मैं दर्शन में गया. ओशो ने मेरे से पूछा: क्‍या तुम संन्‍यास के लिए तैयार हो? मैंने कहा: मुझे पता नहीं. लेकिन आपके प्रवचन मुझे बहुत अच्‍छे लगते है. ओशो ने कहा तुम संन्‍यास ले लो. तुम तैयार हो. बस, मैंने संन्‍यास ले लिया.

फाइल फोटो

संन्‍यास लेने के बाद मैं जब वापस मुंबई आया. लोगों ने मुझे पागल समझा. सब हैरान रह गए. कुछ ने हमदर्दी जताई. लोग तरह तरह की बातें करने लगे मैंने संन्यास क्यों लिया होगा. कुछ दिन काम करने के बाद मैं फिर फिल्मी जगत से ऊबने लगा. मैंने बहुत बार सोचा सबकुछ छोड़कर पूना चला जाऊं वहां जाकर ओशो के आश्रम में रहूं. लेकिन जब मैंने ओशो से इस बारे में बात की तो उन्होंने ये कहकर मना कर दिया कि अभी तुम इसके लिए तैयार नहीं हो. अतिक्रमण तभी होता है. जब तुम समग्र होते हो.

ओशो के आश्रम में रहने की विनोद खन्ना की काफी तमन्ना थी. फिर एक दिन अचानक ओशो ने कहा अब तुम आश्रम में रहने के लिए चले आओ. मैं दूसरे ही दिन बंबई गया, जोर दार प्रेस कांफ्रेंस ली और अपना संन्‍यास घोषित कर दिया. उस वक्‍त मेरा कैरियर शिखर पर था. कई निर्माता मेरी फिल्‍मों में पैसा लगा चुके थे. मेरे परिवार मेरे दोस्‍त, सब के लिए ये बहुत बड़ा सदमा था. सब मुझे पागल कहने लगे. पत्नी बच्चे बिछुड़ गए. लेकिन निर्माताओं को किए सारे वादें मैंने पूरे किए. किसी का पैसा डूबने नहीं दिया.

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ओशो के पास रहने से मेरी सारी मन की सारी उथल-पुथल खत्म हो गई थी. समाधि टैंक मुझे बहुत अच्‍छा लगता था. उसमें मां के गर्भ जैसी स्‍थिति बनाई जाती है. वहां पर मुझे अपने जन्‍म का अनुभव भी हुआ. मैं वहां ओशो के बगीचे में काम करता था, पेड़ -पौधों की देखभाल करता था. वहां मोरों को नाचते देख मुझे अच्छा लगता था.

लेकिन मुझे बच्चों की बहुत याद आ रही थी. फिर मुझे बच्‍चों का ख्‍याल हुआ कि मेरा उनके प्रति कोई कर्तव्‍य है. मैंने फिल्‍मों में वापस जाने की सोची. स्‍वयं ओशो कर रहे थे. जब मनाली में ओशो से पूछने गया तो उन्‍होने कहा, तुम वापस उसी दुनिया में जा सकोगे? मैंने कहा- जा सकूंगा.बंबई आने के बाद मेरी ग्‍लानि में एक बात और जुड़ गई, मैंने ओशो को मना क्‍यों किया. मुझे एक फिल्‍म मिल गई, मैं शूटिंग पर जाने लगा. वहाँ अजीब घटना घटती. जब तक मैं कैमरे के सामने होता, मैं बिलकुल अच्‍छी हालत में होता. जैसे ही मेकअप रूम में जाता रोने लगता. उसी दौरान पत्रकारों ने सारी अफवाहें फैलाई कि मैंने ओशो को छोड़ दिया, मैं विक्षिप्‍त हो गया. कुछ लोग मुझे मनोचिकित्सक के पास जाने की सलाह देने लगे.

फाइल फोटो

उसके बाद मेरी पहली फिल्‍म प्रदर्शित हुई. इंसाफ. यह फिल्‍म सुपरहिट हुई. मेरे दर्शक अभी तक मेरा इंतजार कर रहे थे. मुझे भूले नहीं थे. फिर तो एक के बाद एक फिल्‍म मिलीं और डेढ़ साल में मैंने नया घर खरीदा जो कि पहले घर से ज्‍यादा शानदार था. मेरा जितना लुट गया था उससे दस गुणा लौटकर आया. यह ओशो का कायदा है.

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विनोद खन्ना ने बताया, उस शाम को मैं घर पर ही था. मुझे ओशो की बड़ी याद आ रही थी. सो मैंने उनकी एक किताब उठा ली और पढ़ने लगा. यह वे क्षण थे जब उन्‍होंने देह छोड़ी. मेरी बेचैनी कम नहीं हो रही थी इसलिए मैं कुछ देर के लिए बहार गया. घर आया तो पूना से फोन आ चुका का. पहले तो मुझे बड़ा सदमा लगा, फिर मैं अपने कमरे में गया, ध्‍यान संगीत का टेप चलाया. बड़ी देर तक मैं नाचता रहा और रोता रहा. दोनों चीजें एक साथ हो रही थी. विनोद खन्ना ने अपने चार दशक लंबे सिने करियर में लगभग 150 फिल्मों में अभिनय किया. 27 अप्रैल 2017 को उनका मुंबई में निधन हो गया.

(ओशो टाइम्‍स इंटरनेशनल, अप्रैल—1994 अंक में प्रकाशित साक्षात्कार पर आधारित )

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Published Date: April 27, 2022 7:25 AM IST

Updated Date: April 27, 2022 7:26 AM IST