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Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र के सियासी ड्रामे का पर्दा इस तरह से गिरेगा इसका अंदजा शिवसेना को भले न हो, लेकिन विपक्षी पार्टी बीजेपी (BJP) पहले दिन से यही चाहती थी. हालांकि, शिवसेना (Shiv Sena) के बागी विधायकों का कहना है कि मुख्यमंत्री के पद से उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के इस्तीफे से उन्हें कोई खुशी नहीं मिली है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार शाम सुनवाई के दौरान महाविकास अघाड़ी सरकार को गुरुवार 30 जून को ही बहुमत साबित करने का आदेश दिया. इसके बाद उद्धव ठाकरे के पास कोई रास्ता नहीं बचा था और उन्होंने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari) से मिलकर अपना इस्तीफा सौंप दिया. राज्यपाल ने उनका इस्तीफा तो स्वीकार कर लिया, लेकिन फिलहाल कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रहने को कहा है. इस अवसर पर आज जानते हैं कैसे यह पूरा राजनीतिक ड्रामा चला, कब, क्या हुआ? और किन परिस्थितियों में आखिरकार उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा.
महाविकास अघाड़ी में फूट कहें या शिवसेना में बगावत, इसकी बू राज्यसभा चुनाव से ही आने लगी थी. 10 जून को राज्यसभा चुनाव हुए और इस बार आमने-सामने थीं दो पूर्व सहयोगी पार्टियां भाजपा और शिवसेना. 6 सीटों के लिए चुनाव हुआ. यहां भाजपा के पास इतने विधायक थे कि वह अपने दो उम्मीदवारों को आसानी से जीत दिला सकती थी. इसी तरह महाविकास अघाड़ी (शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी) भी अपने चार उम्मीदवारों को जीत दिलाने में कामयाब हो सकती थी. लेकिन यहीं से मौजूदा राजनीतिक संकट की शुरुआत मानी जा सकती है. 6 सीटों के लिए चुनाव होना था और भाजपा ने अपने 3 उम्मीदवार मैदान में उतार दिए, जबकि महाविकास अघाड़ी की तरफ से 4 प्रत्याशी राज्यसभा चुनाव लड़े. भाजपा के तीनों उम्मीदवार चुनाव जीतकर राज्यसभा पहुंचे, जबकि महाविकास अघाड़ी (MVA) अपने तीन उम्मीदवारों को ही जीत दिला पाई. इस तरह से महाविकास अघाड़ी को एक राज्यसभा सीट का झटका लगा.
राज्यसभा चुनाव के दौरान भी महाराष्ट्र में हाई वोल्टेज ड्राम चला था. आखिरकार चुनाव आयोग की मंजूरी के बाद देर रात वोटों की गिनती शुरू हो पायी थी. महाविकास अघाड़ी को चारों सीटें आसानी से जीतनी चाहिए थीं. उसके तीन उम्मीदवार तो जीत गए, लेकिन चौथे उम्मीदवार शिवसेना नेता संजय पवार चुनाव हार गए और भाजपा प्रत्याशी धनंजय महादिक को जीत मिली. राज्यसभा चुनाव में मिले इस झटके के बाद से ही महाविकास अघाड़ी सरकार पर संकट के बादल छाने लगे थे. भाजपा ने उद्धव सरकार पर निशाना साधना शुरू कर दिया.
राज्यसभा चुनाव में एक सीट गंवाने के बाद अब राज्य में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी सरकार के पास 20 जून को हुए विधानपरिषद चुनाव में लाज बचाने के मौका था. लेकिन एक बार फिर MVA को झटका लगा. विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने विधानपरिषद चुनाव में पांच उम्मीदवार उतारे और अपने पांचों उम्मीदवार को जीत दिलाई. महाविकास अघाड़ी के सभी विधायक उम्मीद के मुताबिक वोट करते तो भाजपा को सिर्फ चार सीटों पर ही जीत मिलती और MVA के 6 प्रत्याशी चुने जाते. शिवसेना और एनसीपी के दो-दो उम्मीदवार तो चुनाव जीत गए, लेकिन कांग्रेस के दो में से एक प्रत्याशी चुनाव हार गया. स्पष्ट था कि विधानपरिषद चुनाव में क्रॉस वोटिंग हुई थी, क्योंकि भाजपा अपने विधायकों के वोटों से सिर्फ 4 उम्मीदवारों को जीत दिला सकती थी.
विधानपरिषद चुनाव में महाविकास अघाड़ी को झटका लगा तो वरिष्ठ शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) अचानक गायब हो गए. मंगलवार सुबह पता चला कि एकनाथ शिंदे अपने समर्थक कुछ विधायकों के साथ गुजरात के शहर सूरत के एक होटल में ठहरे हुए हैं. उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना का उनसे कोई संपर्क नहीं रहा. शुरुआत में बताया गया कि शिंदे को 17 विधायकों का साथ है, फिर यह आंकड़ा 22 और बाद में 35 विधायक उनके साथ होने की बात सामने आई. मंगलवार 21 जून को ही एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में सभी बागी विधायक असम के गुवाहाटी जा पहुंचे. गुवाहाटी पहुंचने के बाद एकनाथ शिंदे ने दावा किया कि उनके साथ 40 से ज्यादा विधायक हैं. इस बीच कुछ अन्य विधायक गुवाहाटी पहुंचे और बागी एकनाथ शिंदे गुट में शामिल होने पहुंचे. इस तरह से एकनाथ शिंदे गुट की तरफ से दावा किया गया कि उनके पास करीब 50 विधायक हैं, जिनमें से 40 से ज्यादा शिवसेना के और कुछ निर्दलीय व अन्य विधायक हैं.
20 जून को विधानपरिषद चुनाव के साथ शुरू हुआ महाराष्ट्र का यह राजनीतिक संकट हर दिन कई बयानों के साथ बढ़ता चला गया. कभी शिवसेना की तरफ से बागियों को चलते-फिरते मृत व्यक्ति करार दिया गया तो कभी बागियों ने विधानसभा उपाध्यक्ष के खिलाफ आरोप लगाए गए. राज्य के अलग-अलग इलाकों में एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के पोस्टरों पर कालिख भी पोती गई. इस बीच एकनाथ शिंदे और अन्य बागियों ने स्वयं को असली शिवसेना बताया और फिर अपने गुट को ‘शिवसेना बालासाहेब ठाकरे गुट’ भी बताया गया. बागियों ने कहा कि वह बालासाहेब ठाकरे के हिंदुत्व के एजेंडे को लेकर आगे बढ़ रहे हैं और वह उनके असली अनुयायी हैं. एकनाथ शिंदे गुट ने स्पष्ट किया कि वह अब भी शिवसेना में ही हैं. शिंदे गुट ने इस बीच MNS प्रमुख राजठाकरे से भी बात की. इस पूरे सियासी ड्रामे के दौरान उद्धव ठाकरे गुट की ओर से संजय राउत लगातार बागियों के खिलाफ उग्र बयान देते रहे. उन्होंने बागियों को मृत शरीर करार दिया और अंत में कहा कि हमें अपनों ने ही धोखा दिया.
इस बीच लगातार यह बात स्पष्ट होती चली गई कि महाविकास अघाड़ी के पास बहुमत नहीं बचा है, क्योंकि एकनाथ शिंदे गुट में 40 से ज्यादा शिवसेनिक और अन्य विधायक शामिल हैं. राज्यपाल ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी सरकार से गुरुवार 30 जून को बहुमत साबित करने को कहा. राज्यपाल के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार 29 जून को इस मुद्दे पर सुनवाई करते हुए उद्धव सरकार को आदेश दिया कि वह 30 जून को ही बहुमत साबित करें. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को इस बात का एहसास था कि उनके पास बहुमत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बुधवार रात ही उद्धव ठाकरे राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पास गए और इस्तीफा दे दिया.
एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में पिछले करीब 1 हफ्ते से गुवाहाटी में डेरा डाले बागी विधायक बुधवार को गोवा पहुंच गए. बागी विधायक आज यानी गुरुवार 30 जून को मुंबई पहुंचेंगे.
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