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Ashadi Ekadashi 2020: जानें क्या है आषाढ़ी एकादशी का महत्व और पौराणिक व्रत कथा

देवशयनी एकादशी प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा के तुरन्त बाद आती है.

Updated: July 1, 2020 12:13 PM IST

By India.com Hindi News Desk | Edited by Deepika Negi

Ashadi Ekadashi 2020: जानें क्या है आषाढ़ी एकादशी का महत्व और पौराणिक व्रत कथा
देवशयनी एकादशी व्रत

नई दिल्ली: आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी का व्रत काफी उत्तम माना जाता है. इसे देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु का शयनकाल प्रारम्भ हो जाता है इसीलिए इसे देवशयनी एकादशी कहते हैं. देवशयनी एकादशी को पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. देवशयनी एकादशी प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा के तुरन्त बाद आती है और अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत जून या जुलाई के महीने में आता है.

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भगवान विष्णु के योगनिद्रा में जाने के बाद चार महीनों तक मांगलिक कार्य नहीं होते हैं. प्रकृति में इन चार महीनों में सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का तेज कम रहता है. शुभ शक्तियों के कमजोर होने पर किए गए कार्यों के परिणाम भी शुभ प्राप्त नहीं होते हैं. इसलिए संत-महात्मा इन चार महीनों यानी चातुर्मास में एक स्थान पर निवास कर जप, तप और आराधना करते हैं. मान्यता है कि चातुर्मास में सभी धाम ब्रज में आ जाते हैं इसलिए इस दौरान ब्रज यात्रा बहुत शुभकारी होती है.

देवशयनी एकादशी की कथा
धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा- हे केशव! आषाढ़ शुक्ल एकादशी का नाम क्या है? इस व्रत के करने की विधान क्या है और किस देवता का इस तिथि को पूजन किया जाता है? श्रीकृष्ण ने कहा कि हे युधिष्ठिर! जिस कथा को ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था वही मैं तुमसे कहता हूं. एक बार नारदजी ने ब्रह्माजी से यही प्रश्न किया था.

तब ब्रह्माजी ने उत्तर दिया कि हे नारद तुमने कलियुगी जीवों के उद्धार के लिए बहुत ही उत्तम प्रश्न किया है, क्योंकि देवशयनी एकादशी का व्रत समस्त व्रतों में उत्तम है. इस व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और जो मनुष्य इस व्रत को नहीं करते वे नरक में जाते हैं. इस व्रत के करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते और उनकी कृपा प्राप्त होती हैं. इस एकादशी का नाम पद्मा है. इसको देवशयनी एकादशी, विष्णु-शयनी एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.

अब मैं तुम्हे एक पौराणिक कथा सुनाता हूं. तुम ध्यान लगाकर सुनो. सूर्यवंश में मांधाता नाम का एक चक्रवर्ती राजा थे, जो सत्यवादी और महान प्रतापी राजा थे. वह अपनी प्रजा का पालन बहुत अच्छी तरह किया करते थे. उसकी समस्त प्रजा धन-धान्य से भरपूर और सुखी थी. उसके राज्य में कभी भी अकाल नहीं पड़ता था.

एक समय राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई और अकाल पड़ गया. प्रजा अन्न की कमी के कारण परेशान हो गई. अन्न के न होने से राज्य में यज्ञ आदि कार्य भी बंद हो गए. एक दिन प्रजा राजा के पास जाकर कहने लगी कि हे राजा! सारी प्रजा त्राहिमाम कर रही है, क्योंकि समस्त विश्व का अस्तित्व वर्षा से है.

वर्षा के अभाव से राज्य में अकाल पड़ गया है और अकाल से प्रजा मर रही है. इसलिए हे राजन! कोई ऐसा उपाय बताओ जिससे प्रजा की तकलीफ दूर हो. राजा मांधाता ने कहा कि आप लोग ठीक कह रहे हैं, वर्षा से ही अन्न पैदा होता है और आप लोग वर्षा न होने से बहुत दुखी हो गए हैं. मैं आप लोगों की तकलिफों को समझता हूं. ऐसा कहकर राजा कुछ सेना साथ लेकर वन की तरफ प्रस्थान कर गए. वह अनेक ऋषियों के आश्रम में भ्रमण करता हुए अंत में ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे. वहां राजा ने अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया.

मुनि ने राजा को आशीर्वाद देकर उनसे आश्रम में आने का कारण पूछा. राजा ने हाथ जोड़कर विनीत भाव से कहा कि हे भगवन! सब प्रकार से धर्म पालन करने पर भी मेरे राज्य में भयानक अकाल पड़ गया है. इससे प्रजा बहुत ज्यादा दुखी है. राजा के पापों के प्रभाव से ही प्रजा को बहत तकलीफ हो रही है, ऐसा शास्त्रों में कहा है. जब मैं धर्मा के अनुसार राज्य करता हूं तो मेरे राज्य में अकाल कैसे पड़ गया? इसके कारण मुझको अभी तक नहीं चल सका.

अब मैं आपके पास इसी संदेह को जानने के लिए आया हूं. कृपा करके आप मेरे इस संदेह को दूर कीजिए. साथ ही प्रजा के कष्ट को दूर करने का कोई उत्तम औऱ कारगर उपाय बताइए. इतनी बात सुनकर ऋषि ने कहा कि हे राजन! यह सतयुग सब युगों में उत्तम है. इसमें धर्म को चारों चरण शामिल हैं अर्थात इस युग में धर्म की सर्वाधिक उन्नति है. लोग ब्रह्म की उपासना करते हैं और इस युग में केवल ब्राह्मणों को ही वेद पढ़ने का अधिकार है और ब्राह्मण ही तपस्या करने का अधिकार रख सकते हैं, परंतु आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है. इसी दोष के कारण आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है और अकाल पड़ रहा है.

इसलिए यदि आप प्रजा का और राज्य का भला चाहते हो तो उस शूद्र का वध कर दो. इस पर राजा ने कहा कि महाराज मैं उस निरपराध तपस्या करने वाले शूद्र को किस तरह मार सकता हूं. आप इस दोष से छूटने का कोई दूसरा उपाय मुझे बताइए. तब ऋषि ने कहा कि हे राजन! यदि तुम अन्य उपाय जानना चाहते हो तो सुनो.

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पद्मा नाम की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो. व्रत के प्रभाव से तुम्हारे राज्य में उत्तम वर्षा होगी और समस्त प्रजा सुख प्राप्त करेगी क्योंकि इस एकादशी का व्रत समस्त सिद्धियों को देने वाला है और समस्त कष्टों का नाश करने वाला है. इस एकादशी का व्रत तुम प्रजा, सेवक और मंत्रियों सहित करो.

मुनि के इस वचन को सुनकर राजा अपने नगर को वापस आ गए और उन्होंने विधिपूर्वक पद्मा एकादशी का व्रत किया. उस व्रत के प्रभाव से राज्य में उत्तम वर्षा हुई और प्रजा को सुख पहुंचा. इसलिए इस मास की एकादशी का व्रत सब मनुष्यों को करना चाहिए. यह व्रत इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति को प्रदान करने वाला है. इस कथा को पढ़ने और सुनने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश हो जाता हैं.

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Published Date: July 1, 2020 11:27 AM IST

Updated Date: July 1, 2020 12:13 PM IST