
Guru Arjan dev: शहीदी दिवस आज, जानें सिखों के पांचवे गुरु अर्जुन देव जी के जीवन के बारे में कुछ खास बातें
गुरु अर्जुन देव जी शांत स्वभाव और कुशाग्र बुद्धि वाले थे. साथ ही उन्हें गुरूबाणी कीर्तन करना भी काफी पसंद था.

नई दिल्ली: अर्जुन देव या गुरू अर्जुन देव सिखों के 5वे गुरु थे. गुरु अर्जुन देव जी शहीदों के सरताज एवं शान्तिपुंज हैं. आध्यात्मिक जगत में गुरु जी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है. उन्हें ब्रह्मज्ञानी भी कहा जाता है. उन्होंने अपना पूरा जीवन धर्म और लोगों की सेवा के लिए न्योछावर कर दिया था. गुरु अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, साल 1563 में हुआ था. उनके पिता गुरु रामदास सिखों के चौथे गुरू थे और उनकी माता का नाम बीबी भानी था. गुरु अर्जुन देव जी शांत स्वभाव और कुशाग्र बुद्धि वाले थे. साथ ही उन्हें गुरूबाणी कीर्तन करना भी काफी पसंद था. सिख संस्कृति को गुरु जी ने घर-घर तक पहुंचाने के लिए अथाह प्रयत्न किए. गुरु दरबार की सही निर्माण व्यवस्था में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है. 1590ई. में तरनतारन के सरोवर की पक्की व्यवस्था भी उनके प्रयास से हुई.
क्यों शहीद हुए थे अर्जन देव जी
अर्जन देव जी ने ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ का संपादन करके उसे मानवता के अद्भुत मार्गदर्शक के रूप में स्थापित किया. उनकी यह सेवा कुछ लोगों को पसंद नहीं आई. ग्रंथ साहिब के संपादन को लेकर कुछ असामाजिक तत्वों ने अकबर बादशाह के पास यह शिकायत की कि ग्रंथ में इस्लाम के खिलाफ लिखा गया है, लेकिन बाद में जब अकबर को वाणी की महानता का पता चला, तो उन्होंने 51मोहरें भेंट कर खेद ज्ञापित किया. अकबर की 1662 में हुई मौत के बाद उनके पुत्र जहाँगीर बादशाह ने लाहौर जो की अब पाकिस्तान में है, अत्यंत यातना देकर उनकी हत्या करवा दी. अनेक कष्ट झेलते हुए गुरु जी शांत रहे, उनका मन एक बार भी कष्टों से नहीं घबराया. तपता तवा उनके शीतल स्वभाव के सामने सुखदाईबन गया. तपती रेत ने भी उनकी निष्ठा भंग नहीं की. गुरु जी ने प्रत्येक कष्ट हंसते-हंसते झेलकर यही अरदास की-
तेरा कीआ मीठा लागे॥ हरि नामु पदारथ नानक मांगे॥
अर्जन देव जी की रचनाएं
गुरु अर्जुन देव जी द्वारा रचित वाणी ने भी संतप्त मानवता को शांति का संदेश दिया. सुखमनी साहिब उनकी अमर-वाणी है. करोडों प्राणी दिन चढ़ते ही सुखमनी साहिब का पाठ कर शांति प्राप्त करते हैं. सुखमनी साहिब में चौबीस अष्टपदी हैं. सुखमनी साहिब राग गाउडी में रची गई रचना है. यह रचना सूत्रात्मक शैली की है. इसमें साधना, नाम-सुमिरन तथा उसके प्रभावों, सेवा और त्याग, मानसिक दुख-सुख एवं मुक्ति की उन अवस्थाओं का उल्लेख किया गया है, जिनकी प्राप्ति कर मानव अपार सुखों की उपलब्धि कर सकता है.
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