
Guru Gobind Singh Jayanti: ये हैं गुरु गोविंद सिंह जी के 5 'ककार', यहां जानें इनके बारे में
Guru Gobind Singh Jayanti: आज के दिन गुरुद्वारों में कीर्तन और गुरुवाणी का पाठ किया जाता है. इस दिन सुख समुदाय के लोग लंगन का आयोजन भी करते है.

Guru Gobind Singh Jayanti: आज सिख धर्म के दसवें गुरु गोविंद सिंह की जयंती है. सिख समुदाय के लोग गुरु गोविंद सिंह की जयंती को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं. आज के दिन गुरुद्वारों में कीर्तन और गुरुवाणी का पाठ किया जाता है. इस दिन सुख समुदाय के लोग लंगन का आयोजन भी करते है.
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कौन थे गुरु गोविंद सिंह
गुरु गोविंद सिंह सिखों के दसवें गुरु होने के साथ ही एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे. सन 1699 में बैसाखी के दिन उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है. उन्होने मुगलों या उनके सहयोगियों के साथ 14 युद्ध लड़े. धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान उन्होंने किया, जिसके लिए उन्हें ‘सरबंसदानी’ (सर्ववंशदानी) भी कहा जाता है. इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं.
गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा संस्कृत सहित कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे. उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की. वे विद्वानों के संरक्षक थे. उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें ‘संत सिपाही’ भी कहा जाता था. वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे.
गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म
गुरु गोविंद सिंह का जन्म नौवें सिख गुरु गुरु तेगबहादुर और माता गुजरी के घर पटना में 22 दिसंबर 1666 को हुआ था. जब वह पैदा हुए थे उस समय उनके पिता असम में धर्म उपदेश को गये थे. उनके बचपन का नाम गोविन्द राय था. पटना में जिस घर में उनका जन्म हुआ था और जिसमें उन्होने अपने प्रथम चार वर्ष बिताये थे, वहीं पर अब तखत श्री पटना साहिब स्थित है.
खालसा पंथ के संस्थापक
उन्होंने सन 1699 में बैसाखी के दिन खालसा जो की सिख धर्म के विधिवत् दीक्षा प्राप्त अनुयायियों का एक सामूहिक रूप है उसका निर्माण किया.
सिख समुदाय के एक सभा में उन्होंने सबके सामने पुछा – “कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है”? उसी समय एक स्वयंसेवक इस बात के लिए राज़ी हो गया और गुरु गोबिंद सिंह उसे तम्बू में ले गए और कुछ देर बाद वापस लौटे एक खून लगे हुए तलवार के साथ. गुरु ने दोबारा उस भीड़ के लोगों से वही सवाल दोबारा पुछा और उसी प्रकार एक और व्यक्ति राज़ी हुआ और उनके साथ गया पर वे तम्बू से जब बहार निकले तो खून से सना तलवार उनके हाथ में था. उसी प्रकार पांचवा स्वयंसेवक जब उनके साथ तम्बू के भीतर गया, कुछ देर बाद गुरु गोबिंद सिंह सभी जीवित सेवकों के साथ वापस लौटे और उन्होंने उन्हें पंज प्यारे या पहले खालसा का नाम दिया.
उसके बाद गुरु गोबिंद जी ने एक लोहे का कटोरा लिया और उसमें पानी और चीनी मिला कर दुधारी तलवार से घोल कर अमृत का नाम दिया. पहले 5 खालसा के बनाने के बाद उन्हें छठवां खालसा का नाम दिया गया जिसके बाद उनका नाम गुरु गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह रख दिया गया. उन्होंने पांच ककारों का महत्व खालसा के लिए समझाया और कहा – केश, कंघा, कड़ा, किरपान, कच्चेरा.
केश- खालसा सिखों के लिए केश रखना अनिवार्य है क्योंकि ये आध्यात्म का प्रतीक है.
कड़ा- गुरु गोविंद सिंह ने कहा था कि इसके जरिए हर खालसा मर्यादित और सीमा के रूप में रहेगा.
कंघा- आध्यात्म के साथ इंसान को सांसरिक होना भी जरूरी है इसलिए केश का ध्यान रखने के लिए कंघे की जरूरत होती है.
कच्चेरा- ये स्फूर्ति का प्रतीक है.
किरपान- हर खालसा का उद्देश्य धर्म की रक्षा के लिए हुआ है. लेकिन धर्म की रक्षा करने वाले को आत्मरक्षा के लिए किरपान की जरूरत होती है.
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