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हरियाली तीज 2022 व्रत कथाः अखंड सौभाग्य का वरदान चाहिए तो हरियाली तीज के दिन जरूर पढ़ें ये कथा

Hariyali Teej 2022 Vrat Katha: हरियाली तीज के दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत-उपवास करती हैं. इस दिन निर्जला व्रत किया जाता है और महिलाएं 16 श्रृंगार करती हैं.

Published: July 31, 2022 7:00 AM IST

By Renu Yadav

हरियाली तीज 2022 व्रत कथाः अखंड सौभाग्य का वरदान चाहिए तो हरियाली तीज के दिन जरूर पढ़ें ये कथा
हरे रंग का महत्व

Hariyali Teej 2022 Vrat Katha: हिंदू पंचांग के अनुसार सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन हरियाली तीज का त्योहार मनाया जाता है. यह त्योहार आज यानि 31 जुलाई को देशभर के कई राज्यों में बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है. हरियाली तीज के दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत कर मां पार्वती (Hariyali Teej 2022) का पूजन करती हैं. वहीं जो कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की कामना से इस दिन पूजन करती हैं.

हरियाली तीज के दिन महिलाएं निर्जला एकादशी (Hariyali Teej Vrat) का व्रत करती है और मां पार्वती से अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. अगर आप भी इस दिन व्रत कर रहे हैं तो इस कथा को अवश्य पढ़ें. इस कथा को पढ़ें बिना यह व्रत अधूरा माना जाता है.

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हरियाली तीज की व्रत कथा

पौराणिक मान्यता है कि इस कथा को भगवान शिव ने मां पार्वती को सुनाया था. माता पार्वती भगवान शंकर को ही अपने पति के रूप में पाना चाहती थीं ओर इसके लिए वह कठोर तप करने लगीं. मां पार्वती ने कई वर्षों तक निराहार और निर्जला व्रत किया. एक दिन महर्षि नारद आए मां पार्वती के पिता हिमालय के घर पहुंचे और कहा कि आपकी बेटी पार्वती के तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उनसे विवाह करना चाहते हैं और उन्हीं का प्रस्ताव लेकर मैं आपके पास आया हूं. यह बात सुनकर हिमालय की खुशी का ठिकाना ना रहा और उन्होंने हां कर दिया. नारद ने संदेश भगवान विष्णु को दे दिया और कहा कि महाराज हिमालय का यह प्रस्ताव अच्छा लगा और वह अपन पुत्री का विवाह आपसे कराने के लिए तैयार हो गए हैं.

यह सूचना नारद ने माता पार्वती को भी जाकर सुनाया. यह सुनकर मां पार्वती बहुत दुखी हो गईं और उन्होंने कहा कि मैं विष्णु से नहीं भगवान शिव से शादी करना चाहती हूं. उन्होंने अपनी सखियों से कहा कि वह अपने घर से दूर जाना चाहती हैं और वहां जाकर तप करना चाहती हैं. इस पर उनकी सखियों ने महाराज हिमालय की नजरों से बचाकर पार्वती को जंगल में एक गुफा में छोड़ दिया.

यहीं रहकर उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप शुरू किया, जिसके लिए उन्होंने रेत के शिवलिंग की स्थापना की. माता पार्वती ने जिस दिन शिवलिंग की स्थापना की वह हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का ही दिन था. इस दिन निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण भी किया.

मां पार्वती की कठोर तपस्या को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने मां पार्वती को मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया. अगले दिन अपनी सखी के साथ माता पार्वती ने व्रत का पारण किया और समस्त पूजा सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया. उधर, माता पार्वती के पिता भगवान विष्णु को अपनी बेटी से विवाह करने का वचन दिए जाने के बाद पुत्री के घर छोड़ देने से परेशान थे.

वह पार्वती को ढूंढ़ते हुए उसी गुफा में पहुंच गए. मां पार्वती ने ऐसा करने की पूरी वजह बताई और कहा कि भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया है. इस पर महाराज हिमालय ने भगवान विष्णु से माफी मांगी और कहा कि मेरी पुत्री को भगवान शिव से विवाह करने की इच्छा है. इसके बाद ही भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था.

डिस्क्लेमर: यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं. India.Com इसकी पुष्टि नहीं करता. इसके लिए किसी एक्सपर्ट की सलाह अवश्य लें.

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