
Kalashtami 2022: कालभैरव की उत्पत्ति कैसे हुई? पढ़ें कालाष्टमी पर प्रचलित कथा
Kalashtami katha 2022: फाल्गुन महीने में कालाष्टमी आती है. इस दिन जो लोग काल भैरव की पूजा कर सच्चे मन से व्रत रखते हैं उनकी सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं. कालभैरव के रूप का जन्म कैसे हुआ? इससे जुड़ी कथा जरूर पढ़ें...

Masik Kalashtami Vrat 2022: फाल्गुन महीने में मनाई जाने वाली कालाष्टमी आज यानि 23 फरवरी को है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जो लोग कालाष्टमी के अनुष्ठानों को विधि-विधान से करते हैं और सच्चे मन से व्रत रखते हैं उनकी सभी परेशानियां दूर हो जाती है. बता दें कि काल भैरव देव भगवान शिव (Lord Shiv) का ही रूप हैं, जिनका आह्वान कर उनकी पूजा की जाती है. आज के दिन जो लोग काल भैरव का व्रत (kaal bhairav Vrat katha) रखते हैं. उन्हें यहां दी प्रचलित कथा को जरूर पढ़ना चाहिए. जानें ये कथा…
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पौराणिक कथा
एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी में ये बहस हुई कि कौन श्रेष्ठ है। ब्रह्मा जी और विष्णु जी सभी देवताओं के साथ भगवान शिव के पास कैलाश पर्वत गए और उन्हें अपनी बहस के बारे में बताया. जैसी ही उन्होंने इस बात को जाना वैसे ही उनके शरीर से एक ज्योति निकली, जो आकाश और पाताल दोनों दिशा में गई। महादेव ने ब्रह्मा जी और विष्णु जी से कहा जो भी सबसे पहले इस ज्योति के अंतिम छोर पर पहुंचेंगे, उसे ही सबसे श्रेष्ठ माना जाएगा. दोनों अनंत ज्योति के छोर तक पहुंचने के लिए चल दिए। कुछ समय बाद जब ब्रह्मा जी और विष्णु जी वापस लौटे तो शिव जी ने पूछा कौन अंतिम छोर तक पहुंचा तो विष्णु जी ने तो सच बोला लेकिन ब्रह्मा जी बोले कि उन्हें छोर मिल गया. शिव जी भगवान तुरंत समझ गए कि ब्रह्मा जी झूठ बोल रहे हैं और उन्होंने विष्णु जी को सर्वश्रेष्ठ घोषित कर दिया। ये बात सुनकर ब्रह्मा जी बेहद क्रोधित हुए और उन्होंने भोलेनाथ को अपशब्द कहना शुरू कर दिया. अपशब्द सुनते ही शिवजी को क्रोध आ गया और उन्होंने अपने रूप से भैरव का जन्म किया। भैरव क्रोधित थे उन्होंने क्रोध में आकर ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया और ब्रह्माजी के पास केवल 4 मुख रह गए। इस रूप से सभी देवतागण घबरा गए। तब इस रूप को शांत करने के लिए ब्रह्माजी ने माफी मांगी और भगवान शिव का क्रोध शांत किया. भैरव के रूप का वर्णन किया जाए तो इनका वाहन काला कुत्ता और हाथ में छड़ी है। इन्हें ‘महाकालेश्वर’ के नाम से भी जानते हैं. वहीं इनका दूसरा नाम दंडाधिपति भी है।
बता दें कि ब्रह्मा जी का सिर काटने पर भैरवजी ब्रह्महत्या के भागीदार हो गए, जिस कारण भैरव बाबा कई दिनों तक भिखारी की तरह रहे. वाराणसी में भैरव बाबा का दंड पूरा हुआ और उन्हें ‘दंडपाणी’ के नाम से जाने जाना लगा.
नोट – इस लेख में दी गई जानकारी मान्यताओं और सूचनाओं पर आधारित है. इससे अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.
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