
Paush Purnima Vrat 2022: पौष पूर्णिमा व्रत आज, कल्पवास शुरू, जानें ये 21 नियम
Paush Purnima Vrat 2022: आज पौष पुर्णिमा है. इसके साथ ही कल्पवास की शुरुआत हो गई है. ऐसी मान्यता है कि आज के दिन गंगा स्नान करने से पाप धुल जाते हैं. कल्पवास के 21 नियम बताए गए हैं. यहां जानिये

Paush Purnima 2022: पौष माह में आने वाली पूर्णिमा को पौष पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. आज 17 जनवरी 2022 को पौष पूर्णिमा है और आज के दिन व्रत रखने (Paush Purnima Vrat) और गंगा स्नान का बहुत ज्यादा महत्व बताया जाता है. ऐसी मान्यता है कि पौष पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने वाले जातकों के पाप धुल जाते हैं और उनकी मनोकामना पूर्ण होती है. आज के दिन अन्न कपडे और फलों व सब्जियों का दान किया जाता है. इसके साथ ही आज से कल्पवास भी शुरू हो रहा है. कल्पवास के 21 नियम हैं. लेकिन सबसे पहले ये जानिये कि कल्पवास क्या है.
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क्या है कल्पवास:
संगम के तट पर रहकर एक महीने तक वेदों का अध्ययन और प्रभु का ध्यान करना ही कल्पवास होता है. पौष महीने के 11वें दिन से कल्पवास शुरू होता है और यह माघ महीने के 12वें दिन तक चलता है. इसलिये कुछ लोग मकर संक्रांति के अगले दिन से ही कल्पवास शुरू कर देते हैं. ऐसा माना जाता है कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ शुरू होने वाले एक मास के कल्पवास से एक कल्प जो ब्रह्मा के एक दिन के बराबर होता है, उतना पुण्य मिलता है.
पूरी होती है मनोकामना :
ऐसा माना जाता है कल्पवास करने वाले जातकों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और वे जन्म जन्मांतर के सभी बंधनों से मुक्त हो जाते हैं. महाभारत में इस बात का वर्णन है कि सौ साल बिना अन्न की गई तपस्या के बराबर ही कल्पवास का फल मिलता है.
कल्पवास के दौरान साफ और सफेद या पीले रंग के वस्त्र धारण करना उचित माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार कल्पवास की न्यूनतम अवधि एक रात्रि हो सकती है वहीं तीन रात्रि, तीन महीना, छह महीना, छह वर्ष, 12 वर्ष या जीवनभर भी कल्पवास किया जा सकता है.
कल्पवास के 21 नियम :
कल्पवास के 21 नियम बताए गए हैं. कल्पवास के दौरान इन नियमों का पालन अनिवार्य होता है. घर- गृहस्थी की चिंता से मुक्त रहना, झूठ ना बोलना, तीन बार गंगा स्नान करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, खुद या पत्नी के बनाए भोजन को ग्रहण करना, शिविर में तुलसी का पौधा रोपना, उपदेश सत्संग में भाग लेना, जमीन पर सोना, स्वल्पाहार या फलाहार का सेवन, सांसारिक चिंता से मुक्ति, इंद्रियों पर संयम, पितरों का पिंडदान, ब्रह्मचर्य का पालन, अहिंसा, विलासिता का त्याग इसमें शामिल हैं.
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