Safla Ekadashi 2019: आज है सफला एकादशी, जानिए इसका महत्व, कथा और पूजन-विधि

पौस मास में कुछ प्रमुख व्रत एवं त्‍योहार पड़ रहे हैं. इसमें कृष्‍ण पक्ष में पड़ने वाली सफला एकादशी का विशेष महत्व है. जो कि 22 दिसंबर दिन रविवार को पड़ रही है.

Updated: December 22, 2019 12:33 AM IST

By India.com Hindi News Desk | Edited by sujeet kumar upadhyay

jaya ekadashi 2021
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Safla Ekadishi 2019: हिन्दू कैलेंडर के अनुसार पौष महीने की शुरुआत हो चुकी है. इस पूरे महीने को ही आध्‍यात्मिक दृष्टि से महत्‍वपूर्ण माना गया है. इस माह में कुछ प्रमुख व्रत एवं त्‍योहार पड़ रहे हैं. इसमें कृष्‍ण पक्ष में पड़ने वाली सफला एकादशी का विशेष महत्व है. सफला एकादशी 22 दिसंबर दिन रविवार यानी आज है. ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस दिन से ही उत्तरायण प्रारंभ होगा, साथ ही शिशिर ऋतु की भी शुरुआत होगी.

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सफला एकादशी का महत्व
पद्मपुराणमें पौषमास के कृष्णपक्ष की एकादशी के विषय में युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण बोले- बड़े-बड़े यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है. इसलिए एकादशी-व्रत अवश्य करना चाहिए. पौषमास के कृष्णपक्ष में सफला नाम की एकादशी होती है. इस दिन भगवान नारायण की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए. यह एकादशी कल्याण करने वाली है. एकादशी समस्त व्रतों में श्रेष्ठ है. इस व्रत से स्‍वास्‍थ्‍य और लंबी आयु का वरदान पाया जा सकता है. इस दिन श्रीहरि की पूजा का विशेष महत्‍व है.

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सफला एकादशी व्रत कथा
चम्पावती नगर का राजा महिष्मत था. उसके पांच पुत्र थे. महिष्मत का बड़ा बेटा लुम्भक हमेशा बुरे कामों में लगा रहता था. उसकी इस प्रकार की हरकतें देख महिष्मत ने उसे अपने राज्य से बाहर निकाल दिया. लुम्भक वन में चला गया और चोरी करने लगा. एक दिन जब वह रात में चोरी करने के लिए नगर में आया तो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया किन्तु जब उसने अपने को राजा महिष्मत का पुत्र बतलाया तो सिपाहियों ने उसे छोड़ दिया. फिर वह वन में लौट आया और वृक्षों के फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा. वह एक पुराने पीपल के वृक्ष के नीचे रहता था. एक बार अंजाने में ही उसने पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत कर लिया. उसने पौष मास में कृष्णपक्ष की दशमी के दिन वृक्षों के फल खाये और वस्त्रहीन होने के कारण रातभर जाड़े का कष्ट भोगा.

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सूर्योदय होने पर भी उसको होश नहीं आया. एकादशी के दिन भी लुम्भक बेहोश पड़ा रहा. दोपहर होने पर उसे होश आया. उठकर वह वन में गया और बहुत से फल लेकर जब तक विश्राम स्थल पर लौटा, तब तक सूर्य अस्त हो चुका था. तब उसने पीपल के वृक्ष की जड़ में बहुत से फल निवेदन करते हुए कहा- इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हों. ऐसा कहकर लुम्भक रातभर सोया नहीं. इस प्रकार अनायास ही उसने सफला एकादशी व्रत का पालन कर लिया. उसी समय आकाशवाणी हुई -राजकुमार लुम्भक! सफला एकादशी व्रत के प्रभाव से तुम राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे. आकाशवाणी के बाद लुम्भक का रूप दिव्य हो गया. तबसे उसकी उत्तम बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में लग गयी. उसने पंद्रह वर्षों तक सफलतापूर्वक राज्य का संचालन किया. उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ. जब वह बड़ा हुआ तो लुम्भक ने राज्य अपने पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में रम गया. अंत में सफला एकादशी के व्रत के प्रभाव से उसने विष्णुलोक को प्राप्त किया.

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ऐसे करें उपासना
1. सुबह नहाकर श्रीहरि का ध्‍यान करें.
2. श्रीहरि को पंचामृत, फूल, फल अर्पित करें.
3. इस दिन उपवास रखने की भी परंपरा है.
4. उत्‍तम स्‍वास्‍थ्‍य के लिए 108 बार ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जाप करें.
5. कहा जाता है कि पूजन के समय चढ़ाए गए फल को प्रसाद रूप में ग्रहण करने से रोगी ठीक हो जाता है.

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