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Somwar Ke Upay: सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है और इस दिन भगवान शिव का पूजन कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है. मान्यता है कि यदि शिव जी आपकी अराधना से प्रसन्न हो जाएं (Somwar Vrat Katha) तो हर मनोकामना पूर्ण करते हैं. ऐसे में इस दिन व्रत-उपासना भी किए जाते हैं. कई जातक भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक सोमवार के दिन व्रत करते हैं. (somwar ke din aise kre puja) व्रत के दौरान मंदिर में जाकर शिवलिंग को जल चढ़ाते हैं. (Somwar Puja Tips) इस दिन व्रत में केवल एक ही समय भोजन किया जाता है. लेकिन अगर आप व्रत के दौरान कथा नहीं पढ़ते तो आपका व्रत अधूरा रह जाएगा.
एक समय की बात है, किसी नगर में एक धनी व्यापारी रहता था और वह दिन-रात भगवान शिव की अराधना करता था. उस व्यापारी के पास धन-दौलत की कमी नहीं थी लेकिन फिर भी वह काफी चिंतित था क्योंकि उसके कोई पुत्र नहीं था. पुत्र पाने की इच्छा से वह व्यापारी प्रति सोमवार भगवान शिव की व्रत-पूजा किया करता था. उस व्यापारी की भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती ने भगवान शिव से कहा- ‘हे प्राणनाथ, यह व्यापारी आपका सच्चा भक्त है, कितने दिनों से यह सोमवार का व्रत और पूजा नियमित कर रहा है. भगवान, आप इस व्यापारी की मनोकामना अवश्य पूर्ण करें.’
पार्वती का इतना आग्रह देखकर भगवान शिव ने कहा- ‘तुम्हारे आग्रह पर मैं इस व्यापारी को पुत्र-प्राप्ति का वरदान देता हूं. लेकिन इसका पुत्र 16 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेगा.’ उसी रात भगवान शिव ने स्वप्न में उस व्यापारी को दर्शन देकर उसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र के 16 वर्ष तक जीवित रहने की बात भी बताई.
भगवान की बातें वह व्यापारी सुन रहा था, जिसे सुनकर ना तो उसे खुशी हुई और ना ही दुख हुआ. वह उसी तरह भगवान शिव की अराधना करता रहा. कुछ समय बात उसकी पत्नी गर्भवती हुई और दसवें महीने में उसके घर पुत्र का जन्म हुआ. व्यापारी को पुत्र-जन्म की अधिक खुशी नहीं हुई क्योंकि उसे पुत्र की अल्प आयु के रहस्य का पता था. यह रहस्य घर में किसी को नहीं मालूम था.
लंबी यात्रा के बाद लड़का और उसका मामा एक नगर में पहुंचे, उस नगर के राजा की कन्या का विवाह था. लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक आंख से काने होने के कारण बहुत चिंतित था. उसे इस बात का भय सता रहा था कि राजा को इस बात का पता चलने पर कहीं वह विवाह से इनकार न कर दें. वर के पिता ने व्यापारी के पुत्र को देखा और सोचा क्यों ना दरवाजे पर पूजा के लिए इस लड़के को ही खड़ा कर दूं?
उसने लड़के के मामा से इस विषय में बात की, माम और लड़का दोनों राजी हो गए. इसके बाद राजा ने कहा कि विवाह भी इसी लड़के के साथ करा दिया जाए तो अच्छा होगा. उन्होंने ऐसा ही किया लेकिन लड़के ने मौका देखकर कन्या की चुन्दड़ी पर लिख दिया ‘कि तेरा विवाह मेरे साथ हुआ है और मैं काशी जी पढ़ने जा रहा हूं. लेकिन जिस लड़के साथ तुम्हें विदा करेंगे वो एक आंख का काना है.
जब राजकुमारी ने अपनी चुन्दड़ी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने विदा होने से मना कर दिया और अपने पिता का यह बात बताई. जिसके बाद बारात वापस लौट गई. वहीं लड़का और उसका मामा काशी जी पहुंच गए. जहां लड़के ने पढ़ना शुरू कर दिया. जब लड़के की आयु 12 वर्ष पूरी हुई तो उसके मामा ने एक यज्ञ रखा, लेकिन लड़के ने कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मामा ने कहा कि तुम आराम करो, जैसे ही लड़का आराम करने गया उसके प्राण चले गए. मामा ने आकर देखा तो वह परेशान हो गया. लेकिन उसके सोचा कि क्यों न पहले यज्ञ सम्पन्न कर लूं. यज्ञ के बाद मामा रोने-पीटने लगा और वहीं से मां पार्वती और शिवजी जा रहे थे.
मामा के रोने, विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वती ने भी सुने. पार्वतीजी ने भगवान से कहा- ‘प्राणनाथ! मुझसे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे। आप इस व्यक्ति के कष्ट अवश्य दूर करें.’ भगवान शिव ने पार्वतीजी के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर अमर को देखा तो पार्वतीजी से बोले- ‘पार्वती! यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया था. इसकी आयु तो पूरी हो गई.’
पार्वतीजी ने फिर भगवान शिव से निवेदन किया- ‘हे प्राणनाथ! आप इस लड़के को जीवित करें. नहीं तो इसके माता-पिता पुत्र की मृत्यु के कारण रो-रोकर अपने प्राणों का त्याग कर देंगे. इस लड़के का पिता तो आपका परम भक्त है। वर्षों से सोमवार का व्रत करते हुए आपको भोग लगा रहा है.’ पार्वती के आग्रह करने पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया और कुछ ही पल में वह जीवित होकर उठ बैठा.
शिक्षा समाप्त करके लड़का अपने मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया. दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां अमर का विवाह हुआ था. वहां के राजा ने उसे पहचान लिया और फिर दास—दासियों और बहुत सारे धन के साथ अपनी पुत्री को उसके साथ विदा कर दिया. इसके बाद मामा—भांजे अपने नगर पहुंचे एक दूत को घर भेजकर अपने आगमन की सूचना भेजी. व्यापारी ने अपनी पत्नी के साथ स्वयं को एक कमरे में बंद कर रखा था. उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे. लेकिन जैसे ही उसके पुत्र के जीवित होने का समाचार मिला वह खुशी से झूम उठा.
डिस्क्लेमर: यहां दी गई सभी जानकारियां धार्मिक और सामाजिक आस्थाओं पर आधारित हैं. India.Com इनकी पुष्टि नहीं करता. इन्हें अपनाने से पहले किसी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें.
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