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9 Years Of Modi Govt: हीराबेन के दुलारे बेटे नरेंद्र, कभी मां की गोद में सिर रखकर जताया प्यार तो कभी पांव धोकर दिया सम्मान

मां की ममता, उसकी संतान को मानवीय संवेदनाओं से भरती है. मां एक व्यक्ति नहीं है, मां एक स्वरूप है.

Published: May 25, 2023 3:55 PM IST

By Pooja Batra | Edited by Pooja Batra

9 Years Of Modi Govt Heeraben's beloved son Narendra showed love by keeping his head on his mother's lap sometimes showed respect by washing her feet
9 Years Of Modi Govt Heeraben's beloved son Narendra

‘घर चलाने के लिए दो चार पैसे ज्यादा मिल जाएं, इसके लिए मां दूसरों के घर के बर्तन भी मांजा करती थीं. समय निकालकर चरखा भी चलाया करती थीं क्योंकि उससे भी कुछ पैसे जुट जाते थे’. इतना कहते ही नरेंद्र मोदी का गला रुंध गया. आंखों से आंसू छलक पड़े. मां के संघर्ष के वो दिन याद आ गए’.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की मां हीराबेन मोदी (PM’s Mother Heeraben Modi) के लिए प्यार और सम्मान किसी से छिपा नहीं है. मोदी ने भले ही कम उम्र में अपना घर छोड़ दिया हो. लेकिन मां को कभी नहीं छोड़ा. वे जहां भी रहे हर पल मां को याद करते रहे. मां में बसे रहे. जब भी कभी जिंदगी की धूप ने जलाया. जब भी कुछ अनकहा रह गया. दर्द चोट देकर मुस्कुराया. उन्हें मां याद आईं. मां के आंचल में मोदी हमेशा सुकून तलाशते थे यही वजह है कि जब भी कोई खास मौका आता वे अपनी मां का आशीर्वाद लेने घर चले जाते. अपने जन्मदिन पर भी मां की आशीष लेना नरेंद्र मोदी कभी नहीं भूलते थे.

नरेंद्र मोदी ने अपनी मां के लिए व्यक्त की थी भावनाएं
मां, ये सिर्फ एक शब्द नहीं है. जीवन की ये वो भावना होती जिसमें स्नेह, धैर्य, विश्वास, कितना कुछ समाया होता है. दुनिया का कोई भी कोना हो, कोई भी देश हो, हर संतान के मन में सबसे अनमोल स्नेह मां के लिए होता है. मां, सिर्फ हमारा शरीर ही नहीं गढ़ती बल्कि हमारा मन, हमारा व्यक्तित्व, हमारा आत्मविश्वास भी गढ़ती है और अपनी संतान के लिए ऐसा करते हुए वो खुद को खपा देती है, खुद को भुला देती है.

नरेंद्र मोदी ने लिखा– मेरी मां जितनी सामान्य हैं, उतनी ही असाधारण भी. ठीक वैसे ही, जैसे हर मां होती है. आज जब मैं अपनी मां के बारे में लिख रहा हूं, तो पढ़ते हुए आपको भी ये लग सकता है कि अरे, मेरी मां भी तो ऐसी ही हैं, मेरी मां भी तो ऐसा ही किया करती हैं. ये पढ़ते हुए आपके मन में अपनी मां की छवि उभरेगी. मां की तपस्या, उसकी संतान को, सही इंसान बनाती है. मां की ममता, उसकी संतान को मानवीय संवेदनाओं से भरती है. मां एक व्यक्ति नहीं है, मां एक स्वरूप है. हमारे यहां कहते हैं, जैसा भक्त वैसा भगवान. वैसे ही अपने मन के भाव के अनुसार, हम मां के स्वरूप को अनुभव कर सकते हैं.

मां का जिक्र होने पर भीग जाती थीं नरेंद्र मोदी की आंखें
100 साल की होने के बावजूद भी हीराबेन में जिजीविषा और उमंग में कोई कमी नहीं थी. मेहसाणा जिले के विसनगर में हीराबा का जन्म हुआ था. वो बहुत कम उम्र की थी जब उनकी मां यानी नरेंद्र मोदी की नानी गुज़र गईं. हीराबेन को मां का प्यार नसीब नहीं हुआ. नरेंद्र मोदी ने अपने ब्लॉग में लिखा था-आप सोचिए, मेरी मां का बचपन मां के बिना ही बीता, वो अपनी मां से जिद नहीं कर पाईं, उनके आंचल में सिर नहीं छिपा पाईं. मां को अक्षर ज्ञान भी नसीब नहीं हुआ, उन्होंने स्कूल का दरवाजा भी नहीं देखा. उन्होंने देखी तो सिर्फ गरीबी और घर में हर तरफ अभाव.

‘शिवाजी नु हालरडु’ लोरी गुनगुनाती थीं मां
नरेंद्र मोदी ने कहा- सामान्य रूप से जहां अभाव रहता है, वहां तनाव भी रहता है. मेरे माता-पिता की विशेषता रही कि अभाव के बीच भी उन्होंने घर में कभी तनाव को हावी नहीं होने दिया. दोनों ने ही अपनी-अपनी जिम्मेदारियां साझा की हुईं थीं. कोई भी मौसम हो, गर्मी हो, बारिश हो, पिताजी चार बजे भोर में घर से निकल जाया करते थे. आसपास के लोग पिताजी के कदमों की आवाज से जान जाते थे कि 4 बज गए हैं,दामोदर काका जा रहे हैं. घर से निकलकर मंदिर जाना, प्रभु दर्शन करना और फिर चाय की दुकान पर पहुंच जाना उनका नित्य कर्म रहता था.

सारी जिम्मेदारियां बखूबी निभाती थीं मां
मां भी समय की उतनी ही पाबंद थीं. उन्हें भी सुबह 4 बजे उठने की आदत थी. सुबह-सुबह ही वो बहुत सारे काम निपटा लिया करती थीं. गेहूं पीसना हो, बाजरा पीसना हो, चावल या दाल बीनना हो, सारे काम वो खुद करती थीं. काम करते हुए मां अपने कुछ पसंदीदा भजन या प्रभातियां गुनगुनाती रहती थीं. नरसी मेहता जी का एक प्रसिद्ध भजन है ‘जलकमल छांडी जाने बाला, स्वामी अमारो जागशे’ वो उन्हें बहुत पसंद है. एक लोरी भी है, ‘शिवाजी नु हालरडु’, मां ये भी बहुत गुनगुनाती थीं.

सब दर्द खुद सह लेती थीं, बच्चों तक आंच न आने देती
घर चलाने के लिए दो चार पैसे ज्यादा मिल जाएं, इसके लिए मां दूसरों के घर के बर्तन भी मांजा करती थीं. समय निकालकर चरखा भी चलाया करती थीं क्योंकि उससे भी कुछ पैसे जुट जाते थे. कपास के छिलके से रूई निकालने का काम, रुई से धागे बनाने का काम, ये सब कुछ मां खुद ही करती थीं. उन्हें डर रहता था कि कपास के छिलकों के कांटें हमें चुभ ना जाएं.

संघर्ष में बीत गई सारी जिंदगी
अपने काम के लिए किसी दूसरे पर निर्भर रहना, अपना काम किसी दूसरे से करवाना उन्हें कभी पसंद नहीं आया. मुझे याद है, वडनगर वाले मिट्टी के घर में बारिश के मौसम से कितनी दिक्कतें होती थीं, लेकिन मां की कोशिश रहती थी कि परेशानी कम से कम हो. इसलिए जून के महीने में, कड़ी धूप में मां घर की छत की खपरैल को ठीक करने के लिए ऊपर चढ़ जाया करती थीं. वो अपनी तरफ से तो कोशिश करती ही थीं लेकिन हमारा घर इतना पुराना हो गया था कि उसकी छत, तेज बारिश सह नहीं पाती थी.

narendra modi's mother last rite

narendra modi’s mother last rite

30 दिसंबर को मां के निधन पर नरेंद्र मोदी ने लिखा था- “शानदार शताब्दी का ईश्वर के चरणों में विराम… मां में मैंने हमेशा उस त्रिमूर्ति की अनुभूति की है, जिसमें एक तपस्वी की यात्रा, निष्काम कर्मयोगी का प्रतीक और मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध जीवन समाहित रहा है.”

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