नई दिल्ली: देश की भयावह औद्योगिक दुर्घटना भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एस रवीन्द्र भट ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया. जस्टिस भट ने इस मामले में पीठ का हिस्सा बनने में असमर्थता व्यक्त की और कहा, मैं इस मामले में भारत सरकार की ओर से पेश हुआ था, जब सरकार ने पुनर्विचार का अनुरोध किया था. Also Read - Mafia Mukhtar Ansari को UP लाने पर जोरदार तकरार, मुकुल रोहतगी ने कहा-उसे CM ही बना दो
इस मामले में केंद्र सरकार की याचिका में भोपाल गैस पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए अमेरिका स्थित यूनियन कार्बाइड कर्पोरेशन (Union Carbide Corporation) की उत्तराधिकारी कंपनियों से 7,844 करोड़ रुपए की अतिरिक्त राशि दिलाने के की मांग की गई है. Also Read - UPSC Exam: UPSC की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों को झटका, नहीं मिलेगा अतिरिक्त मौका
जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने जस्टिस भट के अलग होने के बाद इस मामले की सुनवाई बुधवार के लिए स्थगित कर दी और कहा कि प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे अब इस मामले की सुनवाई के लिए पीठ के गठन पर विचार करेंगे. Also Read - क्या हुआ जब कानून के छात्र ने जज को कहा 'योर ऑनर', सुप्रीम कोर्ट ने...
इस मामले की सुनवाई के लिए पीठ के बैठते ही न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि न्यायमूर्ति भट को इसकी सुनवाई में शामिल होने में कुछ कठिनाई है. पीठ ने कहा, हम इस मामले पर आज विचार नहीं करेंगे. हम प्रधान न्यायाधीश के आदेश का इंतजार करेंगे.
जस्टिस भट ने इस मामले में पीठ का हिस्सा बनने में असमर्थता व्यक्त की और कहा, मैं इस मामले में भारत सरकार की ओर से पेश हुआ था, जब सरकार ने पुनर्विचार का अनुरोध किया था.
इस पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी, न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति एम आर शाह भी शामिल हैं.
केंद्र चाहता है कि गैस त्रासदी से पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने के लिए पहले निर्धारित की गई 47 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि के अलावा यूनियन कार्बाइड और दूसरी फर्मो को 7,844 करोड़ रूपए का अतिरिक्त धन देने का निर्देश दिया जाए.
यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन के भोपाल स्थित संयंत्र से दो-तीन दिसंबर, 1984 को एमआईसी गैस के रिसाव के कारण हुई त्रासदी में तीन हजार से अधिक लोग मारे गये थे और 1.02 लाख लोग इससे बुरी तरह प्रभावित हुए थे.
इस गैस त्रासदी से पीड़ित व्यक्ति पर्याप्त मुआवजा और इस जहरीली गैस के कारण हुई बीमारियों के समुचित इलाज के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं. केंद्र ने दिसंबर, 2010 में मुआवजे की राशि बढ़ाने के लिए शीर्ष अदालत में सुधारात्मक याचिका दायर की थी. संविधान पीठ को यूनियन कार्बाइड और दूसरी फर्मो से 1989 में हुए 47 करोड़ अमेरिकी डालर के समाधान के अतिरिक्त 7,844 करोड़ रुपए दिलाने के लिए केंद्र की सुधारात्मक याचिका पर सुनवाई करनी थीं.
यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन, जिसका स्वामित्व अब डाउ केमिकल्स के पास है, ने इस त्रासदी के लिए मुआवजे के रूप में 47 करोड़ अमेरिकी डालर दिए थे. भोपाल की एक अदालत ने सात जून, 2010 को यूनियन कार्बाइड इंडिया लि. के सात अधिकारियों को इस हादसे के संबंध में दो साल की कैद की सजा सुनाई थी.
इस मामले में यूसीसी का अध्यक्ष वारेन एंडरसन मुख्य आरोपी था, लेकिन वह मुकदमे की सुनवाई के लिए कभी भी पेश नहीं हुआ. भोपाल के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने एक फरवरी, 1992 को उसे भगोड़ा घोषित कर दिया था. भोपाल की अदालत ने एंडरसन की गिरफ्तारी के लिए 1992 और 2009 में गैर जमानती वारंट जारी किए थे. एंडरसन की सितंबर, 2014 में मौत हो गई थी.