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Ghulam Nabi Azad Resignation: जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री व सीनियर कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे पर सांसद मनीष तिवारी ने भी अपना दर्द बयां किया है. उन्होंने कहा कि दो साल पहले हम में से 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को लिखा था कि पार्टी की स्थिति चिंताजनक है और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए.उस पत्र के बाद कांग्रेस सभी विधानसभा चुनाव हार गई. उन्होंने कहा कि कांग्रेस को पुराने नेताओं ने अपने खून-पसीने से संजोया है. अगर किसी को कुछ मिला वह ख़ैरात में नहीं मिला है. मनीष तिवारी ने कहा कि हमें किसी से सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है. मैंने इस पार्टी को 42 साल दिए हैं. मैं यह पहले भी कह चुका हूं, “हम इस संस्था (कांग्रेस) के किरायेदार नहीं हैं. पार्टी के हम सदस्य हैं. अब अगर आप हमें बाहर निकालने की कोशिश करेंगे तो यह दूसरी बात है.
मनीष तिवारी ने कहा कि हम गुलाम नबी आजाद के पत्र के गुण-दोष में नहीं जाना चाहते. वह समझाने की सबसे अच्छी स्थिति में होंगे.जब कोई चापलूस ज्ञान देता है तो हंसी आती है. बता दें कि मनीष तिवारी की भी गिनती कांग्रेस के जी-23 नेताओं में होती है. वह भी कई बार पार्टी की मौजूदा स्थिति पर सवाल उठा चुके हैं.
#WATCH | Congress MP M Tewari says, "Don't want to go into merits of Mr Azad's letter, he'd be in best position to explain…But strange that people who don't have capacity to fight a ward poll, were "chaprasis" of Congress leaders when give "gyaan" about party it's laughable…" pic.twitter.com/9dKLO2y2S8
— ANI (@ANI) August 27, 2022
गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे पर प्रतिक्रिया देते हुए मनीष तिवारी ने कहा कि उत्तर भारत के लोग जो हिमालय की चोटी की ओर रहते हैं वे जज़्बाती और खुददार लोग होते हैं. पिछले 1000 साल से इनकी तासीर आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़ने की रही है. किसी को इन लोगों के धैर्य की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए.
वहीं, कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि गुलाब नबी आजाद के लिए कांग्रेस में किसी चीज़ की कमी नहीं थी. आज जब उनको लगा कि उनको कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा के लिए टिकट नहीं मिलेगी तो उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. लोगों को ऐसे अवसरवादी नेताओं के बारे में जानना चाहिए. उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान में लाखों लोग कोविड से मर रहे थे तब मोदी ने किसी के लिए खेद तक व्यक्त नहीं किया लेकिन जिस दिन गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा में आखिरी दिन था वह उनके लिए रोने लगे. उनका रोना एक नौटंकी था. गुलाम नबी के लिए रोने की कोई वजह नहीं थी.
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