
Omicron in India: विशेषज्ञ बोले - देश में जल्द खत्म होगी तीसरी लहर, साथ ही दी यह हिदायत
देश कोरोना की तीसरी लहर की चपेट में है. तीसरी लहर में अच्छी बात यह है कि इसमें गंभीर संक्रमण के मामले काफी कम हैं. विशेषज्ञ एक और अच्छी खबर यह दे रहे हैं कि जितनी तेजी से तीसरी लहर का कारण बने ओमीक्रोन वेरिएंट के मामले बढ़े थे, उतनी ही तेजी से यह कम भी हो सकते हैं.

नई दिल्ली : देश कोरोना की तीसरी लहर (Third Wave of Corona) की चपेट में है. प्रतिदिन करीब 3 लाख नए मामले सामने आ रहे हैं. तीसरी लहर में अच्छी बात यह है कि इसमें गंभीर संक्रमण के मामले काफी कम हैं. विशेषज्ञ एक और अच्छी खबर यह दे रहे हैं कि जितनी तेजी से तीसरी लहर का कारण बने ओमीक्रोन वेरिएंट (Omicron) के मामले बढ़े थे, उतनी ही तेजी से यह कम भी हो सकते हैं. हालांकि, विशेषज्ञ अब भी मास्क (Mask) पहनने, नियमित तौर पर हाथ धोने और सामाजिक दूरी (Social Distancing) जैसे नियमों का पालन करने को तरजीह दे रहे हैं. उनका कहना है कि हमें जिम्मेदार नागरिक की तरह व्यवहार करना चाहिए और कोरोना से स्वयं व अपने दोस्तों व परिवारजनों को बचाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए.
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हमें पिछले अनुभवों से सीख लेकर अपने स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे को मजबूत करना होगा, ताकि किसी भी तरह के आकस्मिक स्वास्थ्य संकट का सामना किया जा सके. एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने यह राय व्यक्त की है. दुनियाभर में उच्च-गुणवत्ता, सस्ती स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच में सुधार के लिए समर्पित एक गैर-लाभकारी संगठन, एक्सेस हेल्थ इंटरनेशनल के कंट्री डायरेक्टर, डॉ. कृष्णा रेड्डी नल्लामल्ला ने बताया कि अनुमान लगाया जा रहा है कि ओमीक्रॉन देशभर में व्यापक रूप से फैल रहा है. मुंबई और दिल्ली जैसे कुछ महानगर भी चरम पर हैं. लेकिन सौभाग्य से, हमारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली अब इसके बोझ का सामना नहीं कर रही है.
उनके अनुसार, ओमीक्रॉन की उग्रता के बावजूद देश में इसकी वर्तमान लहर को झेलने की क्षमता के लिए कई कारक हैं. पिछली दो लहरों ने एक बड़ी आबादी में प्राकृतिक प्रतिरक्षा (Natural Immunity) पैदा की है, जबकि सुरक्षात्मक एंटीबॉडी 6 महीने के बाद कम हो सकती है, लेकिन टी सेल प्रतिरक्षा अब भी मध्यम से गंभीर बीमारी के खिलाफ सुरक्षा प्रदान कर सकती है. पात्र आबादी का एक बड़ा हिस्सा टीकों की अनिवार्य दो खुराक ले चुका है.
कृष्णा रेड्डी ने कहा, इसलिए टीके और पूर्व संक्रमण कोविड को हल्का बना रहे हैं, यह भी संभव है कि ओमीक्रॉन, इसके कई उत्परिवर्तन के कारण, डेल्टा और पहले के वेरिएंट की तुलना में फेफड़े के पैरेन्काइमा में प्रवेश करने में सक्षम नहीं है. सेल-कल्चर और जानवरों पर किए गए प्रयोग उपरोक्त संकेत देते हैं. यह पूछे जाने पर कि क्या लोगों ने अपने व्यवहार में जिम्मेदार होना सीख लिया है, उन्होंने कहा कि सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक सभाओं को देखते हुए इसकी संभावना कम है. संक्रांति पर्व के लिए उमड़ी भीड़ इस बात का प्रमाण है कि लोगों की याददाश्त कम होती जा रही है.
यह मानते हुए कि क्या देश वर्तमान लहर को झेल सकता लेता है और पूर्व-कोविड सामान्य स्थिति वापस आ सकती है, तो उन्होंने कहा कि चूंकि दुनियाभर में लाखों लोगों में ओमीक्रॉन संक्रमण हो चुका है. डेल्टा और अन्य प्रकार के वेरिएंट अन्य व्यक्तियों में जीवित रह सकते हैं. उन्होंने कहा कि दुनियाभर में वैक्सीन का विकास तीव्र गति से हो रहा है और नाक तथा मुंह के जरिए लिए जाने वाले टीके संक्रामकता को कम करने के लिए हवा में वायरल लोड को कम कर सकते हैं.
उन्होंने कहा, अब हमारे पास तीन एंटीवायरल दवाएं (रेमेडिसविर, प्रैक्सलोविड, और मोलनुपिरवीर) हैं, जिन्हें आपातकालीन उपयोग के आधार पर अनुमोदित किया गया है. उनमें से दो प्रैक्सलोविड और मोलनुपिरवीर मुंह में ली जाने वाली दवाएं हैं. एंटीवायरल और एंटीबॉडी वायरस की संक्रामकता अवधि को कम करते हैं. यह आइसोलेशन और कवारंटीन की अवधि को कम करने सक्षम है. सरकार और निजी उद्योगों को नए वेरिएंट को देखते हुए वैक्सीन और दवा विकास में निवेश करना चाहिए.
उनका मानना है कि मास्क किसी भी वेरिएंट के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करते हैं और वे अन्य श्वसन संक्रमणों को भी कम करते हैं. मास्क प्रदूषण से संबंधित फेफड़ों की समस्याओं से भी सुरक्षा प्रदान करते हैं. कोविड की अनुपस्थिति में भी फेस मास्क पहनने के लाभों पर जनता को शिक्षित करने के प्रयास होने चाहिए.
कृष्णा रेड्डी ने अगले संकट से बचाव और तैयारी के लिए सीखने और उपाय करने की दिशा में स्वास्थ्य प्रणालियों का जायजा लेने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य प्रणालियों के लचीलेपन के संदर्भ में देश कहां खड़ा है, इसका आकलन करने की आवश्यकता है. रोग निगरानी और त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली को मजबूत करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में अधिक निवेश करने की आवश्यकता है.
उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य राज्य का विषय होने के कारण, राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियमन की आवश्यकता है और केंद्र और राज्यों के बीच एक सहमत, समन्वित प्रतिक्रिया प्रणाली आनी चाहिए. वैज्ञानिक साक्ष्य द्वारा निर्देशित आपातकालीन नीतिगत निर्णयों के लिए एक संस्थागत तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया चैनलों के माध्यम से गलत सूचना की बाढ़ की स्थिति में सही और विश्वसनीय संचार के महत्व को देखते हुए पूर्व-निर्धारित संचार रणनीति होनी चाहिए.
उनका विचार है कि वित्तीय सुरक्षा प्रणाली निम्न और मध्यम आय वाले लोगों के लिए बेहताशा स्वास्थ्य व्यय को रोकने के अपने प्राथमिक उद्देश्य में विफल रही है. यहां तक कि संपन्न लोग भी आईसीयू तक नहीं पहुंच पा रहे थे, क्योंकि ये ज्यादातर महानगरों और बड़े शहरों में केंद्रित हैं. इसलिए, जिलों और कस्बों में सार्वजनिक अस्पतालों में गहन देखभाल इकाइयों (ICU) को मजबूत करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि यदि सरकारें गुणवत्तापूर्ण देखभाल प्रदान करने में असमर्थ हैं, तो कम सुविधा वाले जिलों और कस्बों के अस्पतालों में निजी निवेश को आकर्षित करने की नीति बनानी चाहिए.
(इनपुट – आईएएनएस)
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