
Exclusive: उन्होंने बहुत जुल्म ढाये, लेकिन 'शायरा' नहीं हारी, तीन तलाक की दुकान बंद कराने की ठानी
शायरा को अपने बच्चों की शक्ल देखे हुए जमाना हो गया.

मां-बाप कितने जतन से बेटी की शादी करते हैं. इस उम्मीद के साथ कि वो दूसरे घर जाकर खुश रहेगी. लेकिन लाड प्यार से पाली उस बेटी को अगर शादी के बाद पति और ससुराल वाले अपनी संपत्ति समझने लगे तो कैसा लगता होगा? उसे परेशान करने लगे. मारने-पीटने लगे. घर बसने से पहले उजड़ने लगे, तो इसका दर्द कैसा होता होगा?? शादी से तलाक का सफर कैसा होता होगा??? ये तो वही महसूस कर सकता है जो उस पीड़ा से होकर गुजरा हो. लेकिन जब उसी दुख को कोई महिला अपना हथियार बना ले तो हवाओं को उल्टा चलने में भी वक्त नहीं लगता. इंडिया.कॉम ने एक ऐसी ही मुस्लिम महिला शायरा बानो से विशेष बातचीत की. शायरा बानो ने अपने पति द्वारा दिए तीन तलाक को विधि का विधान नहीं मानकर उसके खिलाफ आवाज आवाज उठाई. सुप्रीम कोर्ट गई.
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शायरा बानो उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वाली मुस्लिम महिला हैं. साल 2002 में उनकी शादी इलाहाबाद में रहने वाले रिजवान अहमद से हुई थी. शायरा ने बताया कि उसके ससुराल वाले दहेज मांगते थे. उससे गाली-गलौज, मारपीट करते थे. पहले शौहर से उसके दो बच्चे हैं. इसके बाद करीब सात बार उसका गर्भपात उसकी मर्जी के खिलाफ कराया गया. यही नहीं उसे नशीली दवाईयां भी जाती थी. जिसकी वजह से उसकी याददाश्त कमजोर होने लगी. उसके बाद उनके पति ने अप्रैल 2015 को जबरन मायके भेज दिया. और कुछ वक्त बीत जाने के बाद उसे स्पीड पोस्ट से तलाक भेज दिया. शायरा तो समझ भी नहीं पा रही थी उसके साथ क्या हुआ. तलाक का पत्र पढ़कर वो टूट गई. दिन रात बस एक ही बात सोचती रहती कि अब क्या होगा. एक अजीब सी घुटन थी, अब वो क्या करे. उसे बच्चों की याद सताती, पर उसे मिलने नहीं दिया जाता. वो तड़पती रहती.

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शायरा के मां-बाप से अपनी बच्ची को ऐसे घुटते देखा न गया. शायरा ने भी हिम्मत जुटाई और इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की. लेकिन उसकी याचिका खारिज हो गई. बावजूद इसके शायरा ने हिम्मत नहीं हारी और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जहां उसकी याचिका मंजूर हो गई. शायरा को एक उम्मीद बंधी कि शायद अब उसे इंसाफ मिलेगा.

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जब इंडिया.कॉम ने शायरा से पूछा कि क्या वजह है जो देवबंद और पर्सनल ला इसका विरोध करते हैं? जवाब ने शायरा से कहा, ये तो उनकी दुकान है. महिलाओं की हमारी समाज में कोई इज्जत नहीं है. उसे बस शरीर और संपत्ति के तौर पर देखा जाता है. ऐसी कुरीतियों का समर्थन और इनका प्रचार सिर्फ वे इमाम और मौलवी करते हैं जो अपने पद का दुरूपयोग कर रहे हैं. वो चाहते ही नहीं है कि इस गलत प्रथा को बदला जाए. बजाए पुरुषों को समझाने के महिलाओं पर ही अपने दोष मढ़ते हैं. लेकिन अब वक्त आ गया है उनकी ये दुकान बंद होनी चाहिए.
शायरा ने कहा, मेरी तरह न जाने कितनी ही ऐसी मुस्लिम महिलाएं हैं जो इस कुप्रथा से पीड़ित हैं. दुखी हैं, लेकिन समाज के डर से. बदनामी के डर से. असुरक्षा की भावना से कुछ कर नहीं पाती. तलाक के नाम पर हमारा शोषण बंद होना चाहिए. हम औरतों को एक जानवर की तरह न समझा जाए. तलाक के बाद हमें भेड़ बकरियों की तरह छोड़ दिया जाता है. बच्चों को पालने के लिए भी पैसे भी नहीं दिए जाते. पति हर जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लेता है. क्या यही दिन देखने के लिए हम शादी करते हैं. पति मनमानी करते रहे और हम बस आंसू बहाते रहे.
शायरा ने कहा, हमारी सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना है वो इस तीन तलाक की प्रथा को खत्म करे. जिसमें महिलाओं के शोषण के आलावा कुछ नहीं होता है. समय के साथ ऐसी प्रथाओं को बदलना जरूरी है जो लैंगिक आधार पर भेदभाव करती हों. आपको बता दें यदि तीन तलाक की इस याचिका में फैसला शायरा बानो के पक्ष में आता है तो यह न सिर्फ न्यायिक तौर पर एक ऐतिहासिक फैसला होगा बल्कि इसके निश्चित ही राजनीतिक परिणाम भी होंगे.
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