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नेताजी पर आधारित फिल्म 'गुमनामी' को लेकर विवाद, परिवार ने उठाया सवाल
परिवार का दावा है कि नेताजी की छवि को खराब करने के लिए अपमानजनक अभियान चलाया जा रहा है
कोलकाता: नेताजी के लापता होने के बारे में लगाई जा रही अटकलों पर आधारित निर्माता श्रीजीत मुखर्जी की अगली फिल्म ”गुमनामी” को लेकर विवाद खड़ा हो गया है, जिसमें स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस के परिवार का दावा है कि महान नेताजी की छवि को खराब करने के लिए एक अपमानजनक अभियान चलाया जा रहा है. इसके जवाब में फिल्म के निर्देशक ने हालांकि, कहा कि नेताजी के गायब होने को लेकर लगाई जाने वाली सभी तीन अटकलों को संतुलित तरीके से पेश किया गया है.
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सीबीएफसी ने बुधवार को इस फिल्म को मंजूरी दे दी. निर्देशक ने कहा कि फिल्म में 1970 के दशक में फैजाबाद में दिखे एक साधु गुमनामी बाबा को नेताजी के तौर पर चित्रित नहीं किया गया है. बोस परिवार के 33 सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित एक बयान में कहा गया है कि लंबे समय से एक भ्रामक अभियान चलाया जा रहा है, जिसे गुमनामी बाबा के रूप में जाना जाता है, जो नेताजी से संबंधित फर्जी वस्तुओं को अपने पीछे छोड़ गया.
बयान में यह भी कहा गया कि महान नेता की छवि और विरासत को धूमिल करने के लिए एक भ्रामक और मानहानिकारक अभियान चलाया जा रहा है. पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में नेताजी की बेटी अनीता पीफैफ, भतीजी चित्रा घोष, पोता और भाजपा नेता चंद्र बोस, भतीजे द्वारकानाथ बोस और भतीजी कृष्णा बोस शामिल हैं.
इसक हवाला देते हुए कि 2005 के न्यायमूर्ति मुखर्जी जांच आयोग ने डीएनए परीक्षण के माध्यम से यह निर्णायक प्रमाण प्रदान किया था कि नेताजी और इस गुमनामी बाबा के बीच कोई मेल नहीं है. पत्र में इस भ्रामक अभियान को समाप्त करने की मांग की गई है.
कृष्णा बोस, जो नेताजी शोध ब्यूरो की निदेशक भी हैं, ने कहा, ”हर किसी को व्यावसायिक कारण से फिल्म बनाने का अधिकार है लेकिन किसी को भी महान देशभक्त का अपमान करने का अधिकार नहीं है.” इस मामले को लेकर श्रीजीत मुखर्जी ने कहा कि मुखर्जी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में गुमनामी बाबा का भी उल्लेख किया था.
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता मुखर्जी ने कहा, यहां तक कि अगर आप एक पहलू को उठाते हैं, तो आपको संदर्भ देना होता है, आपको इसका उल्लेख करना होता है… नेताजी का अपमान करने का हमारा कोई इरादा नहीं है, हमने फिल्म में उनके प्रति अपना सम्मान दिखाया है. उन्होंने कहा, यह एक लोकतंत्र है, एक फिल्म निर्माता को महान प्रतीक की मौत के रहस्यों से संबंधित हर संभव पहलुओं और परिचर्चाओं को दिखाने का पूरा अधिकार है.
फिल्म निर्माता मुखर्जी ने कहा, ”हमने तीन दृष्टिकोणों से फिल्म बनाई है और इसका फैसला दर्शकों पर छोड़ दिया है. फिल्म के रिलीज होने के बाद यह साबित हो जाएगा. उन्होंने कहा कि सेंसर बोर्ड ने भी फिल्म को अपनी मंजूरी दी है, जिससे यह जाहिर होता है कि केंद्र सरकार ने भी फिल्म को अपनी सहमति दे दी है.
1945 में नेताजी के लापता होने के पीछे अलग-अलग अटकलें लगाई जारी हैं, जिसमें से एक यह है कि वह भारत लौट आए थे और उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में एक वैराग्य साधु ‘गुमनामी बाबा’बनकर रहते थे.
कुछ अन्य लोगों ने दावा किया है कि बोस 18 अगस्त, 1945 को ताइवान के ताईहोकू हवाई अड्डे पर एक विमान में सवार हुए, जिसके दुर्घटनाग्रस्त होने से उनकी मृत्यु हो गई थी. तीसरी अटकल यह लगाई जा रही है कि नेताजी को पकड़ लिया गया था और रूस की एक जेल में उनकी हत्या कर दी गई थी.
नेताजी की बेटी अनीत पीफैफ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मामले में हस्तक्षेप करने के साथ ही जापान के रेनकोजी मंदिर में रखी गई और नेताजी की माने जाने वाली अस्थियों का डीएनए परीक्षण कराने की मांग की है.
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