
'तेल के दामों की तरह क्या कोयले की कमी के लिए भी राज्य जिम्मेदार?', बिजली संकट को लेकर सरकार पर शिवसेना का वार
शिवसेना ने अपने मुख्यपत्र सामना के जरिए तंजात्मक लहजे में केंद्र पर सवाल दागा कि जिस तरह से तेल की कीमतों के लिए गैरभाजपाई सरकारों को दोषी ठहरा दिया, क्या उस तरीके से ही कोयले की कमी के लिए भी राज्यों को जिम्मेदार ठहरा दिया जाएगा.

देश में पैदा हुए कोयला और बिजली संकट को लेकर सियासी संग्राम की स्थिति पैदा हो गई है. ताजा हालातों के लिए केंद्र जहां चुप्पी साधे बैठी है वहीं विपक्षी पार्टियां इसके लिए केंद्र को जिम्मेवार ठहरा रही हैं. इसी कड़ी में शिवसेना ने अपने मुख्यपत्र सामना के जरिए तंजात्मक लहजे में सवाल दागा कि जिस तरह से तेल की कीमतों के लिए गैरभाजपाई सरकारों को दोषी ठहरा दिया, क्या उस तरीके से ही कोयले की कमी के लिए भी राज्यों को जिम्मेदार ठहरा दिया जाएगा.लेख में सवाल उठाते हुए कहा गया की प्रथ प्रधान आत्मनिर्भर भारत और युवाओं के लिए रोजगार पैदा करने की बात करते हैं लेकिन इन प्ररिस्थितियों में भला हम आत्मनिर्भर कैसे बन पाएंगे.
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सामना में कहा गया कि अकेले महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि इन दिनों देश के 15 से ज्यादा राज्यों में बिजली की कमी के कारण अंधेरा छाने की आशंका अपने पैर पसार रही है. उन्होंने कहा कि इस संकट के लिए कोयले की कमी प्रमुख कारण है और इसके लिए केंद्र सरकार ही जिम्मेदार है. सामना के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी ने दो दिन पहले र्इंधन पर टैक्स में कटौती के मुद्दे पर गैर भाजपाई राज्यों की सरकारों को बेवजह अपराधियों के कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया था। फिर अब कोयले की कमी का ठीकरा भी केंद्र सरकार राज्य सरकारों पर फोड़नेवाली है क्या?
उन्होंने कहा कि बिजली उत्पादन केंद्रों में कोयले की आपूर्ति अबाध रखने की जिम्मेदारी केंद्र की ही है. वजह कुछ भी होगी, परंतु आज बिजली संयत्रों में कोयले की आपूर्ति अनियमित हो रही है. वहां कोयले का भंडार खत्म होता जा रहा है. इसलिए कई राज्यों पर ऐन भीषण गर्मी में विद्युत भार नियमन करने की नौबत आई है. शिवसेना ने कहा कि जब पानी सिर के ऊपर चला गया है तो केंद्र सरकार कोयले की आपूर्ति के लिए भागदौड़ कर रही है.
रेल विभाग का कहना है कि कोयले की ढुलाई के लिए मालगाड़ियों का फेरा बढ़ाया जा रहा है। परंतु इससे सप्ताह में प्रतिदिन करीब सोलह मेल एक्सप्रेस और पैसेंजर गाड़ियों को रद्द करना पड़ा है. रेल मंत्रालय की अधिसूचना का विचार करें तो 24 मई तक पैसेंजर गाड़ियों की करीब 670 फेरियां रद्द की जा चुकी हैं. उसमें 500 से अधिक फेरियां लंबी दूरी की गाड़ियों की है.
कोयले की ढुलाई वगैरह ठीक होगी, फिर भी ‘प्यास लगने पर कुआं खोदने’ का यह ऊपरी कार्य रेलवे प्रशासन के लिए जंजाल बन गया है। इन प्रवासी ट्रेनों के रद्द होने से ग्रीष्मकालीन अवकाश का आनंद लेने के लिए, विवाह समारोहों के लिए, पर्यटन के लिए, जिन्होंने इस दौरान रेल यात्रा की योजना बनाई होगी, अग्रिम आरक्षण किया होगा, वे अब क्या करेंगे? कोयला प्रबंधन की गलती आपकी है और उसे भुगतना आम जनता को पड़ रहा है. केंद्र सरकार का कहना है कि कोयला लोडिंग का प्रमाण भी बढ़ा दिया गया है.
शिवसेना ने कहा कि वास्तविकता ये है कि पिछले मानसून में ही कई कोयला खदानों में पानी भरने से उत्खनन पर प्रभाव पड़ने और भविष्य में कोयले की कमी के संकेत मिल गए थे. यूक्रेन-रूस युद्ध भड़केगा, इसका भी दुनिया की तरह हमें भी आभास हो गया था. उन्होंने कहा कोयले की आपूर्ति के लिए केंद्र सरकार आज जो भागदौड़ कर रही है, वह समय रहते किया होता तो आज देश को लगा बिजली संकट का ‘झटका’ अपेक्षाकृत कम लगा होता.
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