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Punjab ke CM: 15 दिन के मुख्यमंत्री, जो सरदार पटेल के मनाने पर बने थे पंजाब के चीफ मिनिस्टर

Punjab ke CM: गोपी चंद भार्गव वैसे तो तीन बार पंजाब के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन राज्य के चुनावी इतिहास में वह तीसरे नंबर के मुख्यमंत्री बने. इस बार वह सिर्फ 15 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने थे. बताया जाता है कि सरदार वल्लभ भाई पटेल के मनाने पर ही उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री पद को स्वीकार किया था. वैसे बता दें कि वह आजादी के बाद पंजाब के पहले मुख्यमंत्री भी थे.

Updated: January 25, 2022 6:31 PM IST

By Digpal Singh

Punjab ke CM: 15 दिन के मुख्यमंत्री, जो सरदार पटेल के मनाने पर बने थे पंजाब के चीफ मिनिस्टर
फोटो साभार - कांग्रेस का फेसबुक पेज

Punjab ke CM: पंजाब के मुख्यमंत्रियों की बात हो और 15 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने गोपी चंद भार्गव (Gopi Chand Bhargava) का जिक्र न हो ऐसा हो ही नहीं सकता. पंजाब के चुनावी इतिहास में गोपीचंद तीसरे मुख्यमंत्री थे. वह 21 जून 1964 से 6 जुलाई 1964 तक 15 दिन के लिए राज्य के मुख्यमंत्री रहे. हालांकि, आजादी के बाद गोपी चंद भार्गव ही राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने थे. वह 15 अगस्त 1947 से 13 अप्रैल 1949 तक पंजाब के मुख्यमंत्री रहे. उनके बाद भीम सेन सच्चर (Bhim Sen Sachar) ने करीब 188 दिन तक राज्य के मुख्यमंत्री पद का कार्यभार संभाला. 18 अक्टूबर 1949 को एक बार फिर गोपी चंद भार्गव पंजाब के मुख्यमंत्री बने और 20 जून 1951 तक इस पद पर रहे. कुल मिलाकर वह तीन बार राज्य में मुख्यमंत्री रहे, लेकिन पहले दोनों कार्यकाल में वह अंतरिम सरकार के मुख्यमंत्री थे. जहां तक पंजाब के चुनावी इतिहास की बात है तो वह सिर्फ एक बार मुख्यमंत्री बने और वह भी सिर्फ 15 दिन के लिए. आइए जानते हैं गोपीचंद भार्गव के बारे में सब कुछ

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गोपीचंद भार्गव का व्यक्तिगत जीवन

गोपीचंद भार्गव का जन्म 8 मार्च 1889 को संयुक्त पंजाब के सिरसा जिले में हुआ था. सिरसा अब हरियाणा में है. साल 1912 में उन्होंने लाहौर के मेडिकल कॉलेज से अपनी एमबीबीएस की डिग्री ली और फिर 1913 से अपने मेडिकल प्रोफेशन के तहत प्रैक्टिस करने लगे. साल 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद वह राजनीति में आ गए. गोपीचंद भार्गव ने अपने भाई और वकील पंडित ठाकुर दास भार्गव के साथ विद्या चारिणी सभा का गठन किया और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन (India’s Freedom Movement) में शामिल हो गए. वह कांग्रेस (Congress) के सदस्य रहे और कांग्रेस में रहते हुए ही भारत के आजाद होने के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री भी बने. उन्होंने ठाकुर दास भार्गव सीनियर सेकंड्री मॉडेल स्कूल, हिसार में महिलाओं के लिए फतेह चंद कॉलेज के साथ ही कई अन्य स्कूल और कॉलेज खुलवाए थे. 26 दिसंबर 1966 को उनका निधन हो गया.

स्वतंत्रता आंदोलन और गोपीचंद भार्गव

डॉ. गोपीचंद भार्गव ने आजादी के आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और लगभग सभी बड़े आंदोलनों का हिस्सा रहे. उन्हें साल 1921, 1923, 1930, 1940 और 1942 में जेल की सजा भी हुई. अपनी निष्ठा और देशभक्ति के कारण ही उनका नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता था. वे उदार दृष्टिकोण के व्यक्ति थे और जातिवाद में उन्हें कतई विश्वास नहीं था. वह महिलाओं के लिए समानता के पक्षधर थे और अपनी इसी सोच के चलते उन्होंने हिसार में महिलाओं के लिए फतेह चंद कॉलेज खुलवाया था. डॉ. गोपीचंद भार्गव उस समय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े नेताओं लाला लाजपत राय, पंडित मदन मोहन मालवीय और महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थे.

कहा जाता है कि आजादी के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल के अनुरोध पर ही उन्होंने संयुक्त पंजाब में अंतरिम सरकार के मुख्यमंत्री का पद स्वीकार किया था. डॉ. भार्गव गांधी स्मारक निधि के पहले अध्यक्ष भी थे. कहा जाता है कि डॉ. गोपीचंद भार्गव ने गांधी जी की रचनात्मक प्रवृत्तियों को आगे बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए थे. देश के आजाद होने के साथ ही पूर्वी पंजाब में विभाजन के दंश से उपजी पीड़ा, उत्तेजना और कटुता के बीच प्रशासन को उचित दिशा देने में गोपीचंद भार्गव की भूमका महत्वपूर्ण रही.

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Published Date: January 25, 2022 6:30 PM IST

Updated Date: January 25, 2022 6:31 PM IST