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Rajasthan Assembly Election 2018: इस चुनावी मुकाबले में हारकर भी भाजपा के लिए 'मैन ऑफ द मैच' रहीं वसुंधरा राजे
नतीजों के बाद ऐसा लग रहा है कि भाजपा ने वसुंधरा को केंद्र में रखकर थोड़ी और मेहनत की होती तो शायद राज्य में उसे सत्ता सुख से वंचित नहीं होना पड़ता.
नई दिल्ली: अक्टूबर महीने की शुरुआत में जब पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की घोषणा हुई थी तब भाजपा के लिए सबसे ज्यादा खतरा राजस्थान में ही दिख रहा था. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पिछले 15 वर्षों से भाजपा लगातार सत्ता में थी जबकि राजस्थान में वसुंधरा राजे पांच साल पहले ही मुख्यमंत्री बनी थीं. लेकिन वसुंधरा के महारानी वाले रवैये, पार्टी में अंदरूनी कलह और अलग-अलग सामाजिक समूहों का वसुंधरा के प्रति विरोध के चलते यह माना जा रहा था कि कांग्रेस राजस्थान में आसानी से जीत जाएगी. प्रचार अभियान के दौरान भी कहा जा रहा था कि वसुंधरा के प्रति लोगों के विरोध को देखते हुए पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अपनी रैलियों में सीएम के नाम की चर्चा करना तक छोड़ दिया था, लेकिन चुनावी नतीजों के बाद ऐसा लग रहा है कि भाजपा ने वसुंधरा को केंद्र में रखकर थोड़ी और मेहनत की होती तो शायद राज्य में उसे सत्ता सुख से वंचित नहीं होना पड़ता.
इसके कई कारण हैं. खुद भाजपा नेता भी दबी जुबान से यह स्वीकार करते थे कि पार्टी को राजस्थान में 50 से भी कम सीटों से संतुष्ट रहना पड़ सकता है. तमाम एक्जिट पोल में भी राजस्थान में कांग्रेस को काफी बढ़त की हालत में दिखाया गया था, लेकिन मंगलवार सुबह जब वोटों की गिनती शुरू हुई तो भाजपा और कांग्रेस के बीच बराबरी का मुकाबला दिखा. दोपहर बाद तक भी यह स्पष्ट नहीं था कि बहुमत किसे मिलेगा. हालांकि, अंतिम रुझान और नतीजों को मिलाकर देखें तो भाजपा को करीब 73 सीटें मिलती दिख रही हैं. कांग्रेस बहुमत की ओर बढ़ती दिख रही है, लेकिन जीत का अंतर वैसा नहीं है जिसकी कांग्रेस के नेताओं ने उम्मीद की थी. इतना ही नहीं, वोटों की गिनती के दौरान मुकाबला कभी एकतरफा नहीं दिखा, जिसकी उम्मीद कांग्रेस और एक्जिट पोल के अलावा खुद भाजपा नेताओं ने की थी.
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वसुंधरा से राज्य का राजपूत-क्षत्रिय समुदाय नाखुश था. चुनाव से ठीक पहले एससी-एसटी एक्ट पर हुए बवाल ने उनकी हालत और पतली कर दी थी. किसान आंदोलन और कर्ज माफी के कांग्रेसी वादे के चलते यह तबका भी उनसे दूर हो गया था. इसके बावजूद भाजपा राजस्थान में 70 से ज्यादा सीटें हासिल करने में कामयाब रही तो इसका श्रेय पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से ज्यादा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को ही है.
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गौरतलब यह भी है कि मध्यप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के बीच बराबरी का मुकाबला बताया जा रहा था तो छत्तीसगढ़ में भाजपा को कांग्रेस से आगे बताया जा रहा था. हालांकि, अब तक आए नतीजों से यही लग रहा है कि छत्तीसगढ़ में रमण सिंह का नेतृत्व उनकी पार्टी को मुकाबले में भी नहीं रख पाया जबकि मध्य प्रदेश में भी उसके हाथों से सत्ता जाती हुई दिख रही है. राजस्थान में सत्ता बचने की उम्मीद भाजपा को नहीं थी, लेकिन हार के बावजूद सीटों का सम्मानजनक आंकड़े से स्पष्ट है कि इन पांच राज्यों के चुनावी नतीजों में भाजपा के लिए मैन ऑफ द मैच वसुंधरा राजे ही हैं.
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