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Bal Gangadhar Tilak Birth Anniversary: स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, हम इसे लेकर रहेंगे, जानें महान नेता के लोकमान्य बनने की कहानी

आज हम भारत में जिस परिवेश में जिस रहे हैं, उसके पीछे एक नारे का काफी महत्व है- स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूंगा.

Updated: July 23, 2020 9:25 AM IST

By Avinash Rai

Bal Gangadhar Tilak Birth Anniversary: स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, हम इसे लेकर रहेंगे, जानें महान नेता के लोकमान्य बनने की कहानी
Bal Gangadhar Tilak

Bal Gangadhar Tilak Birth Anniversary: आज हम भारत में जिस परिवेश में जिस रहे हैं, उसके पीछे एक नारे का काफी महत्व है- स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूंगा. जी हां, हम बात कर रहे हैं मशहूर स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक की. बाद में इन्हें लोकमान्य की उपाधि दी गई. इससे इन्हें लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के नाम से भी जाना जाने लगा. महाराष्ट्र के चिखली गांव में 23 जुलाई 1856 को जन्में तिलक के पिता को शायद नहीं पता होगा कि उनका बेटा एक महान स्वतंत्रता सेनानी बनेगा जो भारत में राष्ट्रवात की चेतना को हर भारतीय के अंदर जगाएगा. साथ हर भारतीय के अंदर स्वराज का दीप जलाएगा.

लोकमान्य तिलक कांग्रेस पार्टी के गर्म दल के नेता था. वह बचपन से ही अंग्रजों की दमनकारी नीतियों को प्रखर विरोधी रहे हैं. ऐसे में उन्हें भी कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा. लोकमान्य तिलक को पहली साल 1897 में राजद्रोह के नाम पर जेल भेजा गया. इस जेल यात्रा ने तिलक की क्षमता को और मजबूत किया और जनता का भारी समर्थन मिला. इसके बाद से ही इन्हे लोकमान्य की उपाधि दे दी गई. बता दें कि धार्मिक परंपराओ को राष्ट्रीय स्तर तक ले जानेका श्रेय लोकमान्य तिलक को ही जाता है.

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दरअसल ब्रिटिश कानून के हिसाब से लोग किसी भी धार्मिक-सामाजिक कामों में एक जगह पर इकट्ठा होकर भाग नहीं ले सकते थे. ऐसा इसलिए क्योंकि 1885 में कांग्रेस की स्थापना होती है, और फिर देश में राष्ट्रवाद तेजी से बढ़ता जाता है. हालांकि कांग्रेस में कुछ ऐसे लोग थे जिन्हें अंग्रेजों का सानिध्य मिला हुआ था. लेकिन कुछ लोग राष्ट्रीयता की भावना को सर्वोपरि रखते हुए स्वराज के काम में जुटे हुए थे. बता दे आज जो देश में गणेश उत्सव को धूम धाम से मनाते हैं, इसका श्रेय बाल गंगाधर तिलक को ही जाता है. क्योकि साल 1893 में पहली बार तिलक ने ही सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाया था. इससे पहले लोग इस पूजा को अपने घरों के अंदर ही किया करते थे.

बता दें कि लोकमान्य तिलक एक पत्रकार भी थे, आज के समाज में पत्रकारिता जनमानस की आवाज न रहकर एक व्यवसाय बन चुका है. ऐसे में लोकमान्य को उनकी पत्रकारिता के जरिए जनसेवा के लिए जाना जाता है. लोकमान्य तिलक निडर संपादक थे. केसरी और मराठा जैसे अखबारों की शुरुआत लोकमान्य तिलक ने ही की थी. हालांकि इतना सब करने के बावजूद तिलक को अपनी ही पार्टी के अंदर नरम दल के नेताओं के विरोध का लगातार सामना करना पड़ा था. बता दें कि महात्मा गांधी ने तिलक को आधुनिक भारत का निर्माता और जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें भारतीय क्रांति के जनक की उपाधि से नवाजा था.

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