
Saadat Hasan Manto Death Anniversary: मंटो की नज़र एक आशिक का पैग़ाम जिसमें तसव्वुर सांस लेती है
Saadat Hasan Manto Death Anniversary: चाहे मुल्क की बेड़ियां हो या समाज की कुरीतियां इस लेखक ने अपनी कहानियों से सभ्यता के गालों पर तमाचा मारा है.

Saadat Hasan Manto Death Anniversary: साहित्य की दुनिया का एक ऐसा नाम जिसे कोई सरहद अपने अंदर समेट नहीं पाई. चाहे मुल्क की बेड़ियां हो या समाज की कुरीतियां इस लेखक ने अपनी कहानियों से सभ्यता के गालों पर तमाचा मारा है. दुनिया इस महान फनकार को सआदत हसन मंटो (Saadat Hasan Manto) के नाम से जानती है. आज के ही दिन यानी 18 जनवरी को मंटो ने दुनिया को अलविदा कह दिया था. 43 साल की उम्र में मंटो ने औरत-मर्द के रिश्ते, दंगे, भारत-पाकिस्तान का बंटवारा, सामाजिक तनाव जैसे कई मसले पर कहानियां लिखीं जो आज भी प्रासंगिक हैं.
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कहानियों में अश्लीलता के आरोप की वजह से मंटो को छह बार अदालत जाना पड़ा था, जिसमें से तीन बार पाकिस्तान बनने से पहले और बनने के बाद, लेकिन एक भी बार मामला साबित नहीं हो पाया. कहने को तो बहुत कुछ है मगर आज एक ‘आशिक’ के दामन से मंटो के नज़र एक नज़्म पेश-ए-खिदमत है:
‘मंटो की याद में’
मुझे वो टी शर्ट की बहुत अब याद आती है,
के जिसमें कैद थी एक बरस की सभी ज़िंदा तस्वीरें और बना था एक हसीं चेहरा,
के जिस चेहरे पर मानो ऐनकें भी खूब जमती थीं.
काले और सफेद बालों का वो क्या खूब बगिया था.
पेशानी जैसे नूर से चमचमाती हो,
मस्सविर ने बड़ी ही तल्ख़ से उस तस्वीर को टी शर्ट पर उतारा था.
तुम हर पहर पूछती मुझसे इस टी शर्ट को तुम क्यों इतना महफूज़ रखते हो?
आख़िर कौन है ये, किसकी तस्वीर है ये?
मै दिल खोल कर कहता के ये चचा है मेरे,
तुम्हारी उलझनों को मैं सर आंखों पर रखता था
और जवाब में अक्सर तुम्हें कोई कहानी सुनाता था.
काली सलवार की जब दास्तां तुमको सुनाई थी,
शंकर और सुल्ताना की गैर मज़हबी मोहब्बत तुम्हें बहुत भाई थी.
और कभी जो समाज की नंगी कहानियों से तुमको रूबरू करता,
तुम अपनी सारी होश ओ हवास मेरे कांधे पर रख कर मजबूर हो जाती.
ठंडा गोश्त , तमाशा और धुआं जैसी कहानियों को सुन
तुम मुझसे ताबड़तोड़ सवालों की मानो झड़ी ही लगा देती.
मैं अक्सर उस टी शर्ट को याद कर ख़ुद को मज़बूत पाता हूं.
एक अरसा हो गया वो टी शर्ट शेल्फ में दिखती नहीं है अब.
हां मगर उसके रेशे रेशे में जो किरदार सांस लेते थे
वो आज तलक वहीं बैठे सांस लेते हैं.
बड़ी बेबाकी से वो सच और झूठ का फर्क करते हैं.
वो चेहरा अब ज़हन ओ दिल में चस्पा है
जिसे न जाने लोग क्यों….. मंटो बुलाते हैं.
मुझे वो टी शर्ट की बहुत अब याद आती है.
-फ़ैज़ान अंजुम
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