
यूक्रेन संकट- रूसी घेराव के परिणाम
जब हम आजकल चल रहे संकट पर चर्चा करते हैं तो यूक्रेन की रणनीतिक स्थिति को समझना बहुत ही ज़रूरी है. यूक्रेन यूरोप के लिए एक रूसी प्रवेश द्वार है और इसी तरह, यह रूस के लिए नाटो का प्रवेश द्वार भी है.

यूक्रेन और रूस के बीच तनाव कोई नई बात नहीं है. तत्कालीन सोवियत गणराज्य के विघटन के बाद जब इन दोनों देशों का गठन हुआ तब से ही संबंधों में दरारें दिखाई देने लगी थीं. प्रारंभ में विवाद की जड़ था परमाणु और अन्य रणनीतिक हथियारों का नियंत्रण और उसके बाद रूस के काला सागर बेड़े का स्वामित्व. हालांकि 2008 के रूस-जॉर्जियाई संघर्ष तक स्थिति नियंत्रण में रही, पर जब रूस ने इस संघर्ष में यूक्रेन पर जॉर्जिया को हथियारों और जंगी दुकानों की आपूर्ति करने का आरोप लगाया, स्थितियां और बिगड़ गईं . संयुक्त राज्य अमेरिका ने इसका भरपूर फ़ायदा उठाया और नाटो सदस्यता कार्य योजना के अनुसार नाटो में शामिल होने के लिए यूक्रेन का समर्थन किया जिस कारण से यूक्रेन और मास्को के सम्बन्ध और अधिक बिगड़ गए और आज एक नाज़ुक दौर में पहुंच गए हैं.
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यूक्रेन के नेतृत्व में भी कई बदलाव आये. पहले यूलिया टाइमोशेंको और उसके बाद विक्टर युशचेंको के नेतृत्व में रूस-यूक्रेनी संबंधों में कई उतार-चढ़ाव आये और 2014 तक स्थिति काफी हद तक नियंत्रण में रही पर 2014 में यूक्रेन की क्रांति और रूस द्वारा क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद हालात और अधिक बिगड़ गए और जब यूक्रेन ने नाटो में शामिल होने के अपने प्रयासों को और तेज़ किया, रूस ने भी प्रतिक्रिया दी और इसके परिणामस्वरूप डोनबास में अलगाववादियों को रूसी समर्थन मिला. यही नहीं, यूक्रेन ने यूरोप को रूसी तेल और गैस की आपूर्ति सुनिश्चित करने में भी रोक लगानी चाही जो दोनों देशों के संबंधों के टकराव् का कारण बना.
जब हम आजकल चल रहे संकट पर चर्चा करते हैं तो यूक्रेन की रणनीतिक स्थिति को समझना बहुत ही ज़रूरी है. यूक्रेन यूरोप के लिए एक रूसी प्रवेश द्वार है और इसी तरह, यह रूस के लिए नाटो का प्रवेश द्वार भी है. यदि रूस इसे नियंत्रित करता है, तो मास्को यूरोप पर अपना प्रभाव बना सकता है, लेकिन अगर यूक्रेन नाटो में शामिल हो जाता है, तो अमेरिकी सेना के लिए क्रेमलिन दूर नहीं है. इसके अलावा, काला सागर पर नियंत्रण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि रूस के पास अपनी वाणिज्यिक और सैन्य गतिविधियों को संचालित करने के लिए सीमित संख्या में गर्म पानी के बंदरगाह हैं. संक्षेप में, रूस और अमेरिका दोनों यूक्रेन पर अपना नियंत्रण चाहते हैं और वर्तमान स्थिति “एक और शीत युद्ध” से कम नहीं है जो नियंत्रित नहीं किये जाने पर किसी अनहोनी में भी बदल सकती है .
वर्तमान संकट का सबसे महत्वपूर्ण और तात्कालिक कारण था यूक्रेन द्वारा डोनबास क्षेत्र में रूसी समर्थक लड़ाकों को दबाने के लिए अपनी सेना को भेजना जहां यूक्रेन ने अपनी आधी से अधिक सेना की तैनाती कर दी थी. इसके तुरंत बाद रूस ने विरोध किया और कीव स्थित अपने दूतावास से बड़ी तादाद में राजनयिकों को वापस बुला लिया और यूक्रेन पर दवाब बनाने के लिए इसके सीमावर्ती क्षेत्रों में रूसी सेना की तैनाती कर दी. स्थिति अत्यंत ही तनावपूर्ण है और जैसा कि मैं इन पंक्तियों को लिख रहा हूं, बड़ी संख्या में रूसी सैनिक यूक्रेनी सीमाओं की ओर बढ़ रहे हैं. आइए समझते हैं कि रूस ने कैसे यूक्रेन को अपने फंदे में जकड लिया.
17 जनवरी 2022 को, रूस ने टैंक, आर्टिलरी, एंटी टैंक बटालियन, स्पेतस्नाज़ (कमांडो) और अन्य सहायक सेनाओं को बेलारूस भेजा. प्रत्यक्ष रूप से कारण बताया गया कि रूस और बेलारूस की सेनाएं मिलकर एक सैन्य अभ्यास करेंगी और इस अभ्यास को “एक्सरसाइज एलाइड रिजॉल्यूशन” का नाम दिया गया. परन्तु असलियत कुछ और थी और रूस ने अपनी सेनाओं को युद्ध-अभ्यास के बजाय बेलारूस-यूक्रेन सीमा पर महत्वपूर्ण बिंदुओं पर तैनात कर दिया जो कि यूक्रेन के लिए एक चिंता का कारण है. ये सेनाएं आदेश मिलने पर कुछ घंटों के भीतर यूक्रेन में घुस सकती हैं और वो एक चिंताजनक स्थिति होगी.
एक अनुमान के अनुसार, 10-12 से अधिक बीटीजी (बटालियन टैक्टिकल ग्रुप) जिनमें से प्रत्येक में 1200-1500 से अधिक सैनिक शामिल हैं, अकेले बेलारूस में तैनात हैं, जबकि अन्य 12-14 बीटीजी बैकअप के रूप में येलन्या और ब्रांस्क में बेलारूस-रूसी सीमा पर प्रतीक्षा कर रहे हैं. बेलारूस के राष्ट्रपति ने भी यूक्रेन के साथ किसी भी तरह की लड़ाई की स्थिति में रूसी सेना को अपना पूर्ण समर्थन देने की घोषणा की है. रूसी सेनाएं बेलारूस-पोलैंड सीमा और बेलारूस-लिथुआनिया सीमा पर भी तैनात हैं क्योंकि ये दोनों नाटो देश हैं. स्थिति की गंभीरता और नाटो बलों से संभावित खतरे को समझते हुए, रूस ने बेलारूस में तीन S-400 सिस्टम और 12 पैंटसिर एयर डिफेंस सिस्टम भी तैनात किये हैं.
जहां तक रूसी सेना के अन्य जगहों पर तैनाती की बात है, रूस ने यूक्रेन की सीमा से लगे विभिन्न स्थानों पर 60-65 बीटीजी तैनात किए हैं, जिसमें कुर्स्क में 3-5 बीटीजी, पोगोनोवो में 3-5 बीटीजी, और वोरोन्च और बेलगोरोड के क्षेत्रों में फैले 12-15 बीटीजी शामिल हैं. रुस्तोव में 12-15 बीटीजी, रूसी दक्षिणी सैन्य जिले से बैकअप के रूप में लगभग 15 बीटीजी, क्रीमिया जो अब रूस के नियंत्रण में है में 12-15 बीटीजी और मोल्दोवा में 3-5 बीटीजी तैनात हैं जो पूरी तरह यूक्रेन के बंदरगाह शहर ओडेसा को कब्ज़ाने के लिए तैयार हैं . इसके अलावा, एक रूसी नौसेना का काला सागर बेड़ा है जिसमें 90 से अधिक लड़ाकू जहाज शामिल हैं. यह अनुमान लगाया गया है कि यूक्रेन के आसपास लगभग 2 लाख से अधिक रूसी सैनिक तैनात हैं जो न केवल यूक्रेन के लिए बल्कि नाटो के लिए भी चिंता का विषय है. मज़े की बात है कि किसी भी नाटो देश ने अभी तक यूक्रेन के समर्थन में एक भी सैनिक नहीं भेजा है और उनका अभी तक सारा समर्थन हथियारों की सप्लाई और रूस को चेतावनियां देने तक सीमित है. आईये एक चित्र के माध्यम से रूसी सेना की तैनाती को समझते हैं –
काकेशस में स्थिति अत्यंत ही तनावपूर्ण है. हालाँकि यूक्रेन रूसी आक्रमण का मुकाबला करने के लिए अपने पास 2.5 लाख से अधिक मजबूत सेना होने का दावा करता है, उसकी स्थिति वास्तविक रूप से तनावपूर्ण है. हालांकि नाटो देशों ने कीव को भारी संख्या में हथियार, गोला-बारूद और अन्य युद्धक सामग्रियों की आपूर्ति की है, लेकिन देश के भीतर उसे कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है, जहां डोनबास और खार्किव सहित इसका पूरा का पूरा पूर्वी क्षेत्र रूसियों का समर्थन कर रहा है. यूक्रेन के सशस्त्र बलों में अपने नागरिक की जबरन भर्ती के खिलाफ कीव की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. इतना ही नहीं, यूक्रेन खुद भी तेल और गैस के लिए पूरी तरह से रूस पर निर्भर है, जिसके अभाव में गंभीर संकट पैदा हो जाएगा. यूक्रेन के पास यूरोप को आपूर्ति की जाने वाली रूसी गैस को रोकने का एक विकल्प है, लेकिन इससे स्थिति और खराब होगी क्योंकि उससे यूरोपियन यूनियन के देशों में ऊर्जा संकट पैदा हो जायेगा. कोई भी नहीं चाहेगा कि सर्दियों के इस मौसम में जब सारे देश अपने घरों को गरम रखने के लिए रूसी गैस पर निर्भर हैं, कोई जल्दबाज़ी में उठाया गया कदम उनकी सर्दियों को भयावह न बना दे.
अब जब, संयुक्त राज्य अमेरिका ने पहले ही अपना रुख स्पष्ट कर दिया है कि वह एक छोटे या स्थानीय संघर्ष के मामले में अपनी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं करेगा, स्थितियां बदल गयी हैं. हालाँकि अमेरिका ने कहा है कि अगर कोई बड़ा संघर्ष हुआ तो वो इस मामले में अन्य नाटो देशों से विचार करके एक सामूहिक निर्णय लेगा परन्तु ऐसे बड़े संघर्ष की सम्भावना बहुत ही कम है . इसे यूक्रेन के लिए एक करारा झटका माना जा सकता है जो अभी तक नाटो का सदस्य नहीं बन पाया है. इसके अलावा, यूरोप को रूसी गैस पर निर्भरता को देखते हुए, नाटो देश स्वयं इस मुद्दे पर विभाजित है और नाटो के अधिकांश यूरोपीय सदस्य क्रेमलिन के खिलाफ किसी भी सैन्य कार्रवाई का समर्थन नहीं कर रहे हैं, भले स्थिति एक बड़े संघर्ष में ही क्यों न तब्दील हो जाए. अगर नाटो देश यूक्रेन में रूस के खिलाफ अपनी सेनाएं भेजते हैं तो रूस को भी प्रतिक्रियावश कार्रवाई करनी पड़ेगी जो नाटो के यूरोपियन देशों के लिए घातक सिद्ध हो सकता है. यह एक दूसरे शीत युद्ध जैसी स्थिति को जन्म देगा, जिसे अमेरिका भी टालना चाहेगा क्योंकि समूचा विश्व आज एक नाज़ुक आर्थिक स्थिति से गुज़र रहा है.
इससे नाटो देशों के पास केवल एक ही विकल्प बचता है और वह है रूस पर अधिक प्रतिबंध लगाना. यह एक बड़ी बहस का विषय है क्योंकि 2014 के क्रीमियन संकट के बाद रूस पहले से ही अमेरिका और यूरोपीय संघ के कड़े प्रतिबंधों के अधीन है और आगे प्रतिबंधों की अधिक गुंजाइश नहीं है. हालांकि, चीजें कैसे बदलेगी, यह समय की बात है लेकिन एक बात तय है कि इस पूरे खेल में अगर किसी का नुक़सान होना है तो वो है यूक्रेन . 2014 में यूक्रेन ने इसी प्रकार की हरकतों के चलते क्रीमिया को खो दिया और इस बार, इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि वह खार्किव और डोनबास को रूस से बिना किसी बड़े सैन्य टकराव के आसानी से खो सकता है. यूक्रेन के नेताओं को लगता है कि नाटो उनके बचाव में आएगा और वो बड़ी ही आशा से अमेरिका की ओर देख रहे हैं परन्तु उन्हें ये समझना होगा कि नाटो देशों की भीअपनी प्राथमिकताएं हैं और वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए उनका समर्थन मुश्किल लग रहा है. हालाँकि ऊँट किस करवट बैठेगा और निकट भविष्य में कौन कहाँ होगा ये तो केवल समय ही बता सकता है .
(अमित बंसल रक्षा मामलों के जानकार हैं. अंतरराष्ट्रीय संबंधों और आंतरिक सुरक्षा से जुड़े विषयों पर उनकी गहरी रुचि है. वह लेखक, ब्लॉगर और कवि भी हैं.)
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