
EXCLUSIVE: विंडसर्फिंग चैंपियन कात्या कोल्हो की सरकार से मदद की गुहार, विदेश में करना चाहती हैं ट्रेनिंग
विंडसर्फिंग स्पोर्ट्स भारत में ज्यादा मशहूर नहीं है और मीडिया कवरेज भी न के बराबर है। ऐसे में विंडसर्फर्स के लिए स्पॉन्सरशिप हासिल करना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।

गोवा का नाम सुनते ही जेहन में सबसे पहले खूबसूरत समु्द्री तट का ख्याल आता है और वहां जाकर सुकून के पल बिताने का मन करता है लेकिन लेकिन कोई है जो भारत का नाम पूरी दुनिया में रोशन करने के लिए इसी समंदर में रोजाना कड़ी मेहनत कर रहा है। हम बात कर रहे हैं कात्या कोल्हो (Katya Coelho) की जो 2018 एशियन गेम्स और 2014 यूथ ओलपिंक्स में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली भारत की पहली विडंसर्फर हैं। 23 साल की कात्या गोवा से ताल्लुक रखती हैं और उनका लक्ष्य 2023 एशियन गेम्स और 2024 में पेरिस में होने वाले ओलंपिक में भारत का नाम रोशन करना है।
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कात्या ने विंडसर्फर बनने की दिलचस्प कहानी और इस खेल से जुड़ी चुनौतियां के बारें में India.com/cricketcountry.com के साथ खास बातचीत की और बताया कि कैसे मुश्किल परिस्थितियों के बावजूद वह इस खेल को देश में आगे ले जाने के लिए कड़ा संघर्ष कर रही हैं। कात्या ने इस खास बातचीत में कहा, “जब मैंने पहली बार विंडसर्फिंग शुरू की थी तो मैं 10-11 साल की थी और तब मुझे लगा ही नहीं कि वास्तव में यह खेल इतना खर्चीला है। मैं इस खेल में अपने पिता की वजह से आई। वह नेशनल चैंपियन रह चुके हैं और विंडसर्फिंग में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। जब मैं छोटी थी तो उन्हें विंडसर्फिंग करते देखती थी। उन्होंने मेरे भाई को भी विंडसर्फिंग सिखाना शुरू कर दिया और इस तरह मैंने भी ये खेल अपना लिया।
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यूथ ओलंपिक 2014 और एशियन गेम्स 2018 में भारत का प्रतिनिधित्व करने के अनुभव के बारे में कात्या ने कहा, “ईमानदारी से कहूं तो यूथ ओलंपिक और एशियन गेम्स तक पहुंचना मेरे लिए अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि थी। खासकर विडसर्फिंग जैसे खेल में, जो भारत में बहुत ज्यादा मशहूर नहीं है। इसलिए मेरे लिए क्वॉलिफाई करना बहुत मुश्किल और चुनौतीपूर्ण था। ट्रेनिंग करने के लिए फंड जुटाना भी बहुत मुश्किल रहा।

Katya Coelho/ENGN
इसके बावजूद कात्या के जोश में कोई कमी नहीं हैं और कम संसाधनों के साथ वह आने वाले बड़े इवेंट के लिए जमकर मेहनत कर रही हैं। विंडसर्फिंग गेम हमारे देश में भले ही बहुत से लोगों के लिए नया हो लेकिन कात्या के लिए ये बिल्कुल भी नया नहीं हैं। उनको ये खेल विरासत में मिला है और भारत में इस खेल को अलग स्तर पर ले जाने का बीड़ा अकेले अपने कंधे पर उठाए हैं। कात्या के लिए आगे की राह बिल्कुल भी आसान नहीं हैं लेकिन उनके हौसले बुलंद है।
उन्होंने कहा, “अपने पिता के सपोर्ट की बदौलत मैं पहला नेशनल खिताब हासिल करने में कामयाब रही। जब मैंने पहली बार शुरुआत की थी तब मेरा लक्ष्य नेशनल था। फिर मैंने कुछ अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में हिस्सा लिया। और जल्द ही हमने यूथ ओलंपिक और एशियन गेम्स के लिए क्वालीफाई कर लिया।बेशक, एशियन गेम्स के लिए क्वॉलिफाई करना मेरे लिए अभी तक सबसे यादगार पलों में से एक है। मेरे लिए अपने देश का प्रतिनिधित्व करने की काबिलियत हासिल करना ही बहुत गर्व की बात है।”
सरकार से मदद की गुहार
उन्होंने इस खेल की तैयारी के दौरान सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में कहा, “यहां तक पहुंचने की जर्नी में सबसे मुश्किल फंड जुटाना ही रहा है, क्योंकि यह बहुत महंगा खेल है। सही प्रकार के उपकरण प्राप्त करना हमारे लिए हमेशा चुनौतीपूर्ण होता है। साथ ही, भारत में हमारे पास प्रशिक्षण के लिए बहुत ज्यादा सुविधाएं नहीं है। गोवा में ही ज्यादातर मैं और मेरा भाई एक साथ ट्रेनिंग करते हैं। जब आप अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए जाते हैं, तो आप देखते हैं कि उनके पास लगभग 20 लोगों या 30 लोगों का एक बड़ा बेड़ा है जो एक साथ ट्रेनिंग कर रहे हैं। और ऐसा करके आप अपने प्रदर्शन में सुधार कर सकते हैं। जब आप ग्रुप में ट्रेनिंग लेते हैं, तो आप उनसे काफी कुछ सीख सकते हैं। लेकिन जब आप अकेले नौकायन (सेलिंग) कर रहे होते हैं, तो सीखने के लिए बहुत कम जगह होती है क्योंकि आप अकेले ही नौकायन कर रहे होते हैं। आपको यह बताने के लिए कोई अच्छा कोच नहीं होता है कि आप क्या सही कर रहे हैं और आप क्या गलत कर रहे हैं। विशेष रूप से नई श्रेणी आईक्यू फॉइलिंग में, जिसके साथ हम अभी भी वास्तव में प्रयोग कर रहे हैं।”
कात्या के सामने अभी सबसे बड़ा लक्ष्य 2023 एशियन गेम्स है जिसके लिए उन्होंने लगभग क्वालिफाई कर लिया है। उन्होंने कहा, “मेरे सामने अभी जो बड़ा टूर्नामेंट हैं वो 2023 एशियन गेम्स है जो चीन में आयोजित होगा। हमारे पास इसके लिए तीन क्वालीफाइंग राउंड थे। मैंने उन सभी के लिए बहुत कड़ी मेहनत की है और मैं दो जीतने में कामयाब रही हूं। मैं अगले हफ्ते तीसरे राउंड के लिए जा रही हूं। तो एशियन गेम्स के लिए मैंने लगभग क्वालिफाई कर लिया है, ये मैं कह सकती हूं। एशियन गेम्स के बाद मेरा अगला बड़ा टारगेट पेरिस ओलंपिक है जो अब ज्यादा दूर नहीं है। भारत ने विंडसर्फिंग में कभी भी ओलंपिक के लिए क्वालिफाई नहीं किया है। इसलिए मुझे उम्मीद है कि मैं ओलंपिक के लिए विंडसर्फिंग में भारत की तरफ से क्वालीफाई करने वाली पहली महिला बनूंगी। तो यह आने वाले साल में मेरा सबसे बड़ा टारगेट होगा।”
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विंडसर्फिंग में कामयाबी हासिल करने के लिए कात्या जो मेहनत कर रही हैं, उसमें ENGN नाम की संस्था अहम भूमिका निभा रही है। ENGN कात्या को हर तरह से मदद कर रही है जिसमें वित्तीय मदद भी शामिल है। इस संस्था से मिल रहे सपोर्ट के बारे में कात्या ने कहा, “अभी हमें ENGN काफी सपोर्ट कर रही है। ENGN केवल एक प्रतिभा को सपोर्ट करने वाली कंपनी नहीं है, बल्कि वे हमें एक तरह का वेतन भी देती है। इसमें सिर्फ मैं ही नहीं, अन्य एथलीट भी शामिल हैं जिन्हें इंजन काफी सपोर्ट कर रही है। तो इस तरह का सपोर्ट वास्तव में हमारी काफी मदद करता है, विंडसर्फिंग गेम, जो ज्यादा पापुलर नहीं है। जैसा कि सब जानते हैं इस तरह के गेम में स्पॉन्सर हासिल करना बहुत कठिन काम है, ऐसे में ENGN लगातार हमारे ब्रांड एंडोर्समेंट पर काम कर रही हैं और ज्यादा से ज्यादा स्पॉन्सरशिप हासिल कर रही है।
विंडसर्फिंग की सबसे बड़ी चुनौती के सवाल के जवाब में कात्या ने बताया, “मेरी सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इस खेल को बहुत ज्यादा मान्यता हासिल नहीं है। मेरा मुख्य लक्ष्य अपने राज्य गोवा और भारत में विंडसर्फिंग को अगले स्तर तक ले जाना और एक बड़ी पहचान दिलाना है। चूंकि इस खेल मैं अभी अकेली भारतीय महिला हूं और IQFoil कैटेगिरी में क्वॉलिफाई करने वाली पहली महिला हूं, तो मैं इस खेल को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाना चाहती हूं क्योंरि यह एक बहुत अच्छा खेल है। इकोफ्रेंडली है और इसमें किसी भी तरह की मोटर या इंजन का इस्तेमाल नहीं होता है।”
विंडसर्फिंग में कड़ी मेहनत की दरकार
उन्होंने कहा, “मैं वास्तव में इस खेल को बढ़ावा देना चाहती हूं और यही मुझे बेहतर करने के लिए प्रेरित करता है। बेशक, एथलीट होना बहुत कठिन है। आप शारीरिक रूप से अपने शरीर को हर दिन तपा रहे हैं। विशेष रूप से विंडसर्फिंग जैसे खेल में जो शारीरिक रूप से बहुत कठिन है। हमें 11:00 या 12:00 बजे की तेज धूप में बहुत ही कड़ी ट्रेनिंग करनी होती है। अन्य एथलीट को भी ऐसा करना पड़ता है। समुद्र कभी-कभी आपकी कड़ी परीक्षा लेता है और हवा की रफ्तार भी बहुत तेज होती है। यह एक साहसिक खेल है। इस खेल में आपको मानसिक रूप से मजबूत होने की जरूरत है और चुनौतियों का सामना करने के लिए हर समय तैयार रहना होता है। निश्चित रूप से यह शारीरिक और मानसिक रूप से थका देने वाला होता है। ये सारी चुनौतियों के सहने के काबिल होना ही मुझे काफी प्रेरित करता है।”
कात्या को ENGN जैसी संस्था से भले ही भरपूर सपोर्ट मिल रहा हो लेकिन अभी भी उन्हें सरकार से मदद का इंतजार है। इस बारें में उन्होंने कहा, “ईमानदारी से कहूं तो सरकार से मुझे वास्तव में किसी प्रकार का फंड नहीं मिल रहा है। मुझे थाईलैंड में अपने अंतर्राष्ट्रीय इंवेट के लिए आंशिक धनराशि मिली, जिसमें मैंने भारत के लिए रजत पदक जीता। वो भारत का पहला iQFoil मेडल था। वास्तव में मुझे सरकार से अभी तक ज्यादा सपोर्ट नहीं मिला है। मेरा खर्चा अभी मेरे माता-पिता और इंजन उठा रही है। 80% खर्च मेरा परिवार और इंजन वहन करता है। सरकार से बहुत कम सहयोग मिलता है। यह एक मुश्किल खेल है। लेकिन फिर भी हम इस स्तर पर बिना किसी सहायता और बिना किसी तरह के वित्तीय मदद के खेल रहे हैं। ऐसे में अगर हम एशियन और ओलंपिक तक का सफर तय कर रहे है, तो मुझे लगता है कि बस थोड़ा और सपोर्ट मिलते ही हम कमाल कर सकते हैं।”
कात्या ने कहा, “अब जब मैं एशियन गेम्स के लिए 90% क्वालिफाई कर चुकी हूं, तो मुझे वास्तव में विदेश में ट्रेनिंग की आवश्यकता है। अगर मैं कम से कम 6 महीने के लिए विदेश में एक अच्छे ट्रेनर की निगरानी में ट्रेनिंग हासिल कर पाती हूं तो वास्तव में ये मेरे करियर में काफी मददगार साबित होगा। क्योंकि अभी तक इस तरह का एक्सपोजर मुझे नहीं मिला है। इसलिए मेरे करियर के इस मोड़ पर अंतरराष्ट्रीय कोचिंग काफी अहम होगी।”
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