
गर्भपात की अनुमति के लिए उच्चतम न्यायालय पहुंची 20 वर्षीय छात्रा जन्म देने पर हुई राजी, जानें- किस बात पर जताई असहमति?
20 वर्षीय इंजीनियरिंग की छात्रा 30 हफ्ते के गर्भ को गिराने की अनुमति के लिए वह सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई, शीर्ष अदालत ने इसको जोखिम भरा मानते हुए एम्स में उसकी डिलीवरी कराए जाने के लिए राजी किया.

करीब 30 सप्ताह के अपने गर्भ को गिराने की अनुमति के लिए उच्चतम न्यायालय पहुंची अभियांत्रिकी की 20 वर्षीय छात्रा एम्स में बच्चे को जन्म देने एवं उसे गोद देने पर बृहस्पतिवार को राजी हो गयी.
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प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की रिपोर्ट पर गौर किया और कहा कि अब इस चरण में गर्भपात कराना सुरक्षित नहीं है और महिला बच्चे को जन्म देने को इच्छुक है. इससे पहले एम्स को सुरक्षित गर्भपात की संभावना खंगालने का निर्देश दिया गया था.
मामले की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जे बी पार्दीवाला की पीठ ने सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता, अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल ऐश्वर्या भाटी और महिला के वकील को अजन्मे भ्रूण और जन्म के बाद उसके भावी माता-पिता के विषय पर निर्णय करने वास्ते चर्चा के लिए प्रधान न्यायाधीश के चैंबर में बुलाया, क्योंकि अविवाहित महिला ने कहा कि वह बच्चे की देखभाल नहीं कर पायेगी.
संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘ अदालत से की गयी अनुरोध के हिसाब से एम्स द्वारा बच्चे का प्रसव एम्स में किया जाएगा. ’’
पीठ ने कहा, ‘‘ हम एम्स निदेशक से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध करते हैं कि बिना किसी शुल्क के जरूरी सुविधाओं का इंतजाम किया जाएं, ताकि प्रसव सुरक्षित दशा में हो.’’
(Input-Bhasha)
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