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धार्मिक यात्रा: इस बार करिये भगवान सूर्य को समर्पित कोणार्क मंदिर के दर्शन, जानिए पौराणिक मान्यता

इस बार आप ओडिशा के कोणार्क मंदिर के दर्शन कर सकते हैं. यह मंदिर ओडिशा के पुरी में स्थित है जो भगवान सूर्य को समर्पित है. देश के कोने-कोने से श्रद्धालु कोणार्क मंदिर जाते हैं.

Updated: June 24, 2022 10:21 AM IST

By Lalit Fulara

धार्मिक यात्रा: इस बार करिये भगवान सूर्य को समर्पित कोणार्क मंदिर के दर्शन, जानिए पौराणिक मान्यता

Konark Sun Temple odisha: इस बार आप ओडिशा के कोणार्क मंदिर के दर्शन कर सकते हैं. यह मंदिर ओडिशा के पुरी में स्थित है जो भगवान सूर्य को समर्पित है. देश के कोने-कोने से श्रद्धालु कोणार्क मंदिर जाते हैं. यह मंदिर 750 से भी ज्यादा साल पुराना है. इसका निर्माण 1250 ई. में गांग वंश राजा नरसिंहदेव प्रथम ने कराया था. अबुल फजल ने आइन-ए-अकबरी में लिखा है की राजा नरसिंह देव ने 12 साल के पूरे राजस्व को मंदिर के निर्माण में ही लगा दिया था.

इस मंदिर को पूर्व दिशा की ओर ऐसे बनाया गया है कि सूरज की पहली किरण मंदिर के प्रवेश द्वार पर पड़ती है.  यह मंदिर कलिंग शैली में निर्मित है और इसकी संरचना रथ के आकार की है. रथ में कुल 12 जोड़ी पहिए हैं. एक पहिए का व्‍यास करीब 3 मीटर है. इन पहियों को धूप धड़ी भी कहते हैं, क्योंकि ये वक्त बताने का काम करते हैं. इस रथ में सात घोड़े हैं, जिनको सप्ताह के सात दिनों का प्रतीक माना जाता है.

इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो मुर्तियां हैं, जिसमें सिंह के नीचे हाथी है और हाथी के नीचे मानव शरीर है. मान्यता है कि इस मंदिर के करीब 2 किलोमीटर उत्तर में चंद्रभागा नदी बहती थी जो अब विलुप्त हो गई है. ऐसी कहावत है कि इस मंदिर के निर्माण में 1200 कुशल शिल्पियों ने 12 साल तक काम किया लेकिन मंदिर का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाया. जिसके बाद मुख्य शिल्पकार दिसुमुहराना के बेटे धर्मपदा ने निर्माण पूरा किया और मंदिर बनने के बाद उन्होंने चंद्रभागा नदी में कूदकर जान दे दी. इस मंदिर का निर्माण बलुआ पत्थर और ग्रेनाइट से हुआ है. कोणार्क शब्द दो शब्दों कोण और अर्क से मिलकर बना हुआ है जिसमें अर्क का अर्थ सूर्यदेव है. इस मंदिर में भगवान सूर्य रथ पर सवार हैं. यह मंदिर जगन्नाथ पुरी से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

कलिंग शैली में निर्मित इस मंदिर को साल 1984 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था.

पौराणिक मान्यता

पौराणिक मान्यता के अनुसार, श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को श्राप मिलने के कारण कोढ़ रोग हो गया था. जिससे निजात पाने के लिए साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के संगम पर कोणार्क में बारह साल तक तपस्या की. जिसके बाद सूर्य देव ने उन्हें इस रोग से मुक्त किया. तब उन्होंने इस जगह पर सूर्य देव का मंदिर स्थापित करने का निर्णय लिया और नदी में स्नान के दौरान उन्हें सूर्य देव की एक प्रतिमा मिली. ऐसी मान्यता है कि सूर्य देव की इस प्रतिमा को विश्वकर्मा ने बनाया था. इसी मूर्ति को साम्ब ने स्थापित किया.

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