सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई जनवरी 2019 तक टली

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल एवं न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी.

Updated: October 29, 2018 12:03 PM IST

By India.com Hindi News Desk | Edited by David John

Supreme-Court

नई दिल्ली: जनवरी 2019 तक अयोध्या मामले की सुनवाई टल गई है. सुप्रीम कोर्ट पहले अयोध्या की राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि को तीन भागों में बांटने वाले 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सोमवार से सुनवाई करने वाला था. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल एवं न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ इस मामले में दायर अपीलों पर सुनवाई अब जनवरी 2019 में करेगी. हालांकि कोर्ट ने डेट तय नहीं किया है.

सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर को 1994 के अपने उस फैसले पर पुनर्विचार के मुद्दे को पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ को सौंपने से इंकार कर दिया था जिसमें कहा गया था कि ‘मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं’ है. यह मुद्दा अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान उठा था. सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 2:1 के बहुमत से अपने फैसले में कहा कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में दीवानी वाद का निर्णय साक्ष्यों के आधार पर होगा और पूर्व का फैसला इस मामले में प्रासंगिक नहीं है.

न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने अपनी और प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा था कि उसे यह देखना होगा कि 1994 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने किस संदर्भ में यह फैसला सुनाया था. दूसरी ओर, खंडपीठ के तीसरे सदस्य न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर ने दोनों न्यायाधीशों से असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि धार्मिक आस्था को ध्यान में रखते हुए यह फैसला करना होगा कि क्या मस्जिद इस्लाम का अंग है और इसके लिये विस्तार से विचार की आवश्यकता है.

न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने अपनी और प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा था कि उसे यह देखना होगा कि 1994 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने किस संदर्भ में यह फैसला सुनाया था. दूसरी ओर, खंडपीठ के तीसरे सदस्य न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर ने दोनों न्यायाधीशों से असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि धार्मिक आस्था को ध्यान में रखते हुए यह फैसला करना होगा कि क्या मस्जिद इस्लाम का अंग है और इसके लिये विस्तार से विचार की आवश्यकता है.

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