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तो क्या आजमगढ़ से चुनाव लड़ने के लिए नहीं तैयार थे धर्मेंद्र यादव, उपचुनाव के झटकों से कैसे उबरेगी सपा?

आजमगढ़ और रामपुर में मिली हार के बाद समाजवादी पार्टी की मुसीबत बढ़ गई है. एक तो उसके परंपरागत वोटों में सेंध लग गई है. दूसरा गठबंधन के साथी मैदान में निकलने की सलाह दे रहे हैं.

Published: June 29, 2022 3:41 PM IST

By Nitesh Srivastava | Edited by Nitesh Srivastava

तो क्या आजमगढ़ से चुनाव लड़ने के लिए नहीं तैयार थे धर्मेंद्र यादव, उपचुनाव के झटकों से कैसे उबरेगी सपा?
क्या यादव परिवार में सब ठीक नहीं चल रहा ?

आजमगढ़ और रामपुर में मिली हार के बाद समाजवादी पार्टी की मुसीबत बढ़ गई है. एक तो उसके परंपरागत वोटों में सेंध लग गई है. दूसरा गठबंधन के साथी मैदान में निकलने की सलाह दे रहे हैं. अगर ऐसा रहा तो 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को खासी परेशानी उठानी पड़ेगी. इन झटकों के बाद सपा कैसे उबरेगी इसका मंथन करना पड़ेगा.

महज तीन माह पहले आजमगढ़ जिले की सभी सीटों पर विजय पाने वाली सपा को लोकसभा के उपचुनाव में ढेर हो गई. कुछ ऐसी विधानसभा जहां पर पार्टी को प्रतिशत बढ़ाने में भी दिक्कतें हुई हैं. सदर विधानसभा में जहां विधानसभा चुनाव में भाजपा 16 हजार से अधिक वोटों से हारी थी वहां पर उपचुनाव में भाजपा को 6500 से अधिक से बढ़त मिली है. यहां पर 70 हजार से अधिक वोटर यादव और तकरीबन 40 हजार मुस्लिम हैं. मुबारकपुर में अखिलेश कुछ नहीं कर सके. जमाली को यहां से 67 हजार से अधिक वोट मिले हैं, यहां पर मुस्लिम के अलावा दलित वोट भी मिले हैं. सगड़ी और मेहरनगर में भी भाजपा बढ़त बनाने में कामयाब रही है. इसी से आंदाजा लगाया जा सकता है कि सपा का अपने वजूद वाला वोट भी दरक रहा है.

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सपा के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि धर्मेद्र यादव को आजमगढ़ से चुनाव लड़ने के लिए काफी मनाना पड़ा था. वह यहां से चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे। लेकिन स्वामी प्रसाद के दबाव में उन्हें वहां जाना पड़ा और हार का सामना करना पड़ा.

दरअसल, 2024 में स्वामी चाहते हैं कि उनकी बेटी बदायूं से चुनाव लड़े. आजमगढ़ चूंकि मुलायम परिवार का सियासी गढ़ रहा है इसी कारण सपा मुखिया यहां पर अपना वर्चस्व बनाएं रखना चाहते थे इसी कारण धर्मेद्र को चुनाव मैदान में उतारा था.

उधर, सपा के सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव पर एक बार फिर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा है कि लखनऊ के एसी कमरों से बाहर निकलकर अखिलेश गांवों में जाएं. जो गलती विधानसभा में की गयी थी. वही उपचुनाव में दोहराई गई है, जिसका खमियाजा सीट गवांकर भुगतना पड़ रहा है. आजमगढ़ में उन्हें प्रचार के लिए जाना चाहिए था.

राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि सपा मुखिया अखिलेश यादव ने उपचुनाव के टिकट वितरण में देरी और प्रचार में न उतारना उन्हें भारी पड़ गया. इसके बाद वह दबाव में रहे हैं. वह ज्यादा अतिउत्साह में हो गए. वह अपने गढ़ का कोर वोट संभालने में नकामयाब रहे.


इधर, भाजपा ने अपना राष्ट्रवाद और विकास का कॉकटेल लोगों समझाने में कामायाब रही है. भाजपा के निरहुआ को 34.44 प्रतिशत वोट पाकर सभी वर्गो को समेटने में कामयाब होते दिखे हैं. उधर भाजपा ने मुख्यमंत्री समेत सहयोगी मंत्रियों की फौज उतार रखी थी. संगठन महामंत्री सुनील बसंल ने दोनों सीटों की निगरानी बहुत अच्छे ढंग से की, क्योंकि उनका लक्ष्य 2024 है. इस जीत ने पार्टी के कार्यकर्ताओं के जोश को दोगुना कर दिया है.

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