
Nayak Film के 'अनिल कपूर की तरह' यूपी के तीन दिन का CM बना था यह नेता, जानें किन परिस्थितियों में मिली थी जिम्मेदारी
फिल्मी पर्दे पर आपने एक दिन का मुख्यमंत्री भी देखा होगा और उसके कारनामे देखकर लोगों को सिनेमा हॉल में तालियां व सीटी बजाते भी देखा होगा. अगर आपको लगता है कि हकीकत में ऐसा नहीं हुआ तो आप गलत हैं. भले ही एक दिन का सीएम न बना हो, लेकिन एक नेता हैं जो तीन दिन के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके हैं. चलिए जानते हैं कौन हैं वह तीन दिन के मुख्यमंत्री और किन परिस्थितियों में वह सीएम बने व हटाए गए.

UP ka 3 Din ka CM: आपने अनिल कपूर (Anil Kapoor) की फिल्म ‘नायक’ तो देखी ही होगी. इस फिल्म में मुख्यमंत्री का इंटरव्यू कर रहे न्यूज एंकर के प्रश्न से परेशान होकर मुख्यमंत्री एक दिन का सीएम बनने का प्रस्ताव देता है तो वह काफी सोच-विचार के बाद हां कर देता है. इसके बाद न्यूज एंकर से एक दिन का मुख्यमंत्री बना यह शख्स राजनीति को बदलकर रख देता है. खैर यह फिल्मी कहानी है. हम सब यह भी जानते हैं कि फिल्मी कहानी भी हमारे समाज का आईना ही होती हैं. भले ही एक दिन का सीएम और फिल्म जैसा करिश्मा आजतक नहीं हुआ हो, लेकिन उत्तर प्रदेश ने तीन दिन का मुख्यमंत्री जरूर देखा है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) से पहले उन तीन दिन के मुख्यमंत्री के बारे में भी जान लेते हैं.
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ये उन दिनों की बात है
ये उन दिनों की बात है… इस वाक्य से लग रहा होगा कि इस स्टोरी को लेकर कितना ड्रामा और सस्पेंस बनाया जा रहा है. असल में यह कहानी है ही ऐसे दौर की. कहानी उत्तर प्रदेश की 13वीं असेंबली की है. 1996 में विधानसभा चुनाव हुए तो भारतीय जनता पार्टी (BJP) को 174 सीटें मिलीं, समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) 110 सीटों के साथ दूसरे और बहुजन समाज पार्टी (BSP) 67 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर रही. कांग्रेस (Congress) को 33 सीटें मिलीं और 13 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार विजयी रहे. अन्य पार्टियों को 27 सीटों पर जीत मिली. तब उत्तर प्रदेश में विधानसभा की कुल सीटों की संख्या आज की तरह 403 नहीं बल्की 425 थी और बहुमत का आंकड़ा 213 था. जाहिर है किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. पांच साल की विधानसभा में 5 मुख्यमंत्री बदले और एक बार राष्ट्रपति शासन भी लगाना पड़ा.
कौन-कौन बने मुख्यमंत्री
विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला और चुनाव के बाद भी पार्टियों में गठबंधन को लेकर सहमति नहीं बनी. इसलिए 13वीं विधानसभा की शुरुआत राष्ट्रपति शासन के साथ हुई. राज्य में करीब डेढ़ साल तक राष्ट्रपति शासन रहा. मार्च 1997 में मायावती (Mayawati) राज्य की मुख्यमंत्री बनीं और 184 दिन तक इस पद पर रहीं. सितंबर 1997 में कल्याण सिंह (Kalyan Singh) मुख्यमंत्री बने और नवंबर 1999 तक इस पद पर रहे. नवंबर 1999 में राम प्रकाश गुप्ता (Ram Prakash Gupta) को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया और वह करीब 1 साल तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहे. उनके बाद राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) ने अक्टूबर 2000 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और मार्च 2002 तक मुख्यमंत्री रहे. चार मुख्यमंत्रियों की बात हो गई. प्रश्न यह है कि पांचवे मुख्यमंत्री कौन थे और किन परिस्थितियों में उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया?
कौन थे 3 दिन के मुख्यमंत्री
तीन दिन तक मुख्यमंत्री रहने वाले नेता का नाम जगदंबिका पाल है. मौजूदा दौर में भाजपा नेता जगदंबिका पाल (Jagdambika Pal) उस समय अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस में थे. मायावती से लेकर राजनाथ सिंह तक सभी मुख्यमंत्री भाजपा और बसपा गठबंधन के तहत मुख्यमंत्री बने थे. इस गठबंधन को विधायक नरेश अग्रवाल के नेतृत्व में कांग्रेस से अलग होकर बनी पार्टी अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस का समर्थन हासिल था. फरवरी 1998 में नरेश अग्रवाल ने इस गठबंधन सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद राज्यपाल रोमेश भंडारी ने 21 फरवरी 1998 को कल्याण सिंह की सरकार बर्खास्त कर दी. उन्होंने कांग्रेस को सरकार बनाने का न्यौता दिया और जगदंबिका पाल राज्य के मुख्यमंत्री बन गए. नरेश अग्रवाल को उपमुख्यमंत्री बनाया गया. राज्यपाल के आदेश पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बैंच ने रोक लगा दी और कल्याण सिंह को वापस मुख्यमंत्री के रूप में बहाल कर दिया. इस दौरान जगदंबिका पाल 21 फरवरी से 23 फरवरी 1998 तक तीन दिन राज्य के मुख्यमंत्री रहे.
कौन हैं जगदंबिका पाल

जगदंबिका पाल
21 अक्टूबर 1950 को बस्ती जिले में जन्मे जगदंबिका पाल वर्तमान में भाजपा नेता हैं. कांग्रेस से अलग होकर वह नारायण दत्त तिवारी के साथ ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) में शामिल हुए. 1997 में उन्होंने नरेश अग्रवाल, राजीव शुक्ला व अन्य नेताओं के साथ मिलकर अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी बनाई. बाद में वह कांग्रेस में लौटे और उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे. 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस की टिकट पर यूपी में सिद्धार्थनगर जिले की डुमरियागंज लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीते भी. 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए. इसके बाद वह 2014 और 2019 में भी भाजपा के टिकट पर डुमरियागंज से लोकसभा चुनाव जीते.
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