UP Panchayat Chunav 2021: पानी के लिए मीलों चलती थीं, अब पंचायत चुनाव में उतरीं ये 11 जल सहेलियां, बोलीं- जीते तो...

ये महिलाएं बुंदलेखंड जैसे सूखे इलाके में पानी के लिए काम करने को लेकर लोकप्रिय हैं.

Published: April 13, 2021 12:22 AM IST

By India.com Hindi News Desk | Edited by PTI Feeds

UP Panchayat Chunav 2021: पानी के लिए मीलों चलती थीं, अब पंचायत चुनाव में उतरीं ये 11 जल सहेलियां, बोलीं- जीते तो...

UP Panchayat Chunav 2021: वर्ष 2017 तक उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के एक गांव में पानी लाने के लिए महिलाएं मीलों यात्राएं करती थीं क्योंकि गांव के लिए मुख्य जलस्रोत, चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित एक जलाशय के पुनरूद्धार की उनकी मांग पर किसी ने ध्यान नहीं दिया.झांसी के बबीना प्रखंड के मानपुर गांव की निवासी गीता देवी ने 2016 में स्थिति को बदलने का फैसला किया और वह परमार्थ समाज सेवी संगठन द्वारा शुरू ‘जल सहेली’ मुहिम से जुड़ गयीं. इस दौरान उन्हें पंचायत स्तर पर कराए जाने वाले काम, महिला अधिकार और जलाशयों को पुनजीर्वित करने की तकनीक के बारे में पता चला.

परमार्थ समाज सेवी संगठन की राज्य समन्वयक शिवानी सिंह ने फोन पर बताया कि कई आवेदन लगाने, निकाय संस्था के चक्कर काटने, प्रदर्शन करने और श्रम दान के बाद चंदेला तालाब फिर से पानी से लबालब हो गया और इस तरह महिलाओं की मुश्किलों का भी अंत हुआ. जलाशय में पानी की उपलब्धता से साल में खेतों में दो बार फसल भी होने लगी. पानी की एक टंकी भी तैयार की गयी और गीता के घर के आसपास के कम से कम 70 घरों में पाइप से पानी की आपूर्ति की जा रही है. बुंदेलखंड क्षेत्र के झांसी जिले में 15 अप्रैल को पंचायत चुनाव है और इसमें गीता समेत 11 ‘जल सहेली’ भी मुकाबले में हैं.

परमार्थ के सचिव संजय सिंह ने बताया कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में फैले बुंदेलखंड क्षेत्र में यमुना, केन और बेतवा समेत सात नदियां है लेकिन क्षेत्र में बांधों के फैलाव के कारण पिछले 17 साल में 13 बार सूखा पड़ा है. उन्होंने कहा कि क्षेत्र की संरचना के कारण यह समस्या है. जमीन काफी उपजाऊ हैं लेकिन नदी का जलग्रहण क्षेत्र ग्रेनाइट से बना है जिससे जल जमीन के नीचे पहुंच नहीं पाता है और इस कारण बहुत कम भूजल का इस्तेमाल हो पाता है. इसलिए समस्या का एक ही समाधान है कि जलाशयों में जल का संरक्षण किया जाए.

बबीना प्रखंड के सिमरावाड़ी गांव की मीरा देवी की कहानी भी मिलती जुलती है. झांसी शहर से नजदीक होने के बावजूद उनके गांव में पानी की काफी किल्लत थी. अपने प्रयासों के लिए 2019 में केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के जल प्रहरी पुरस्कार से सम्मानित मीरा (45) ने जल संकट से निजात दिलाने के लिए ग्रामीण आजीविका मिशन के साथ जुड़ते हुए 46 स्वयं सहायता समूहों के जरिए महिलाओं को गोलबंद किया. उनके प्रयासों के कारण पुराने चापाकल से फिर से पानी निकलना शुरू हो गया और नए चापाकल भी लगाए जा रहे हैं.सतपुर कोटी की राजकुमारी, बामेर से ज्योति, खजुराहा बुजुर्ग से वटी खांगर और मीरा, सिमरावाड़ी से मीना, गणेशगढ़ से शारदा देवी, इमलिया से ममता, खैरा से मंजू रजक और बदनपुर से राजकुमारी भी गीता और मीरा के साथ अलग-अलग गांवों से चुनाव मैदान में मुकाबले में है.

संजय सिंह ने कहा, ‘‘यह सच है कि (चुनाव में) धन और शराब की भूमिका रहती है लेकिन इन महिलाओं के पास मतदाताओं को देने के लिए कुछ नहीं हैं. ये महिलाएं अपनी लोकप्रियता, जल के लिए प्रतिबद्धता और संघर्ष के सहारे चुनाव मैदान में उतरी हैं.’’

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